Tuesday 23 December 2014

पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी हार को भांप लिया था मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित ने

डरी हुई और बदली बदली हैं शीला


पूजा मेहरोत्रा


वूमंस प्रेस कोर की विजिटर बुक में ‘लव ऑल’ लिखते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के चेहरे पर हमेशा वाली मुस्कराहट तो थी, लेकिन 4 दिसंबर को होने वाले चुनाव को लेकर मन में कहीं एक डर भी था जो अचानक जाहिर हो गया। विजिटर बुक में हस्ताक्षर करते हुए उनके मुंह से निकला ‘मुख्यमंत्री के तौर पर यह मेरा आखिरी ऑटोग्राफ है।
शायद!’ उनके मन की चिंता को भांपते हुए उनके इर्दगिर्द खड़ी महिला पत्रकार आगामी चुनाव के मद्देनजर उन्हें शुभकामनाएं देने लगीं। वे मुस्कराने की नाकाम कोशिश करती हुई एक बार फिर सवालों के जवाब देती हुई आगे निकल गर्इं। वैसे, वे भले ही 15 साल के अपने बेहतरीन कामों का दम भर रही हों लेकिन वे मानती हैं कि हर चुनाव चुनौती भरा होता है और हर बार चुनौती का स्वरूप अलग-अलग होता है। शुक्रवार को महिला प्रेस क्लब की ‘प्रेस मीट’ में शीला दीक्षित बदली-बदली हुई सी नजर आर्इं। मुख्यमंत्री को करीब से जानने वाले कुछ पत्रकार उनके इस बदले रूप को देखकर आश्चर्यचकित थे। मीडिया के सवालों का सीधा-सीदा जवाब न देने वाली और सवाल सुनते ही झल्लाने वाली मुख्यमंत्री एक घंटे से अधिक समय तक एक के बाद एक पत्रकारों के लगभग हर सवाल का जवाब देती रहीं। ये सवाल दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा से लेकर आम आदमी पार्टी से मिल रही चुनौतियों तक के बारे में थे।
15 सालों में दिल्ली को बदल देने का दावा करने वाली शीला दीक्षित बार-बार पत्रकारों से पूछ रही थीं कि सच बताइए, क्या पिछले १५ वर्षों में आपको दिल्ली में कोई बदलाव नजर नहीं आया? आम आदमी पार्टी (आप) को वे अपने लिए भले ही खतरा न मानती हों लेकिन वे उसे कड़ी चुनौती से इनकार भी नहीं कर रही हैं। बातों-बातों में फिर पलटकर उन्होंने यह कह भी दिया कि भाजपा एक पारंपरिक और स्थापित पार्टी है और उससे हमारा सीधा मुकाबला है लेकिन ‘आप’ पार्टी की बात जितनी कम की जाए उतना अच्छा है, क्योंकि वह सिर्फ हवा है। स्टिंग ऑपरेशन के बाद इस पार्टी की ईमानदारी का गुब्बारा फूट चुका है। वैसे, शीला दीक्षित यह भी मानती हैं कि दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि 15 सालों से आप लगातार मुख्यमंत्री हैं और यदि आप चौथी बार
मुख्यमंत्री बनती हैं तो कौन सी नई चुनौतियां आपके सामने होंगी? उन्होंने कहा कि हर दिन कुछ-न-कुछ चुनौती होती ही है। लोगों की आशाएं आपसे जुड़ती जाती हैं। हर साल लाखों लोग दिल्ली में आकर बस रहे हैं। उन लोगों के रहने, खाने से लेकर उनकी सुरक्षा हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। शहर में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं जिस वजह से लोग दिल्ली में बसने की आकांक्षा रखते हैं। पार्टी की पराजय की हालत में खुद केंद्र की राजनीति में जाने के सवाल को बहुत ही संजीदगी से लेते हुए दीक्षित ने कहा कि ‘यदि हमारी पार्टी जीतती है तो विधायक और हाइकमान तय करेंगे कि वे किसे अपना नेता चुनते हैं और यदि हमारी पार्टी नहीं जीतती है तो फिर मैं लोकसभा चुनाव तक वही करूंगी जो मुझसे कहा जाएगा।
यूपीए-३ यदि पावर में आती है तो पार्टी मेरे लिए जो योजना बनाएगी, मैं उसी का पालन करूंगी।’ पिछले दिनों दिल्ली के आंबेडकर नगर में हुई राहुल गांधी की फ्लॉप मानी जा रही रैली से क्या यह नहीं लगता कि लोगों का कांग्रेस से मोहभंग हो रहा है? इस सवाल पर वे बहुत ही मजाकिया अंदाज में बोलीं, ‘आप मुझसे राहुल की मंगोलपुरी रैली के बारे में तो कुछ नहीं पूछ रही हैं, जहां अपार संख्या में लोग थे? हां, आंबेडकर नगर की रैली में पुलिस की कड़ी सुरक्षा और देर से भाषण शुरू होने की वजह से लोग निकलने लगे थे। वैसे मैं जांच कर रही हूं कि आखिर क्या हुआ कि लोग नहीं पहुंचे।’
दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हां, दिल्ली में महिलाओं को असुरक्षा महसूस होती है, इसलिए हमने महिलाओं के लिए अन्य शिकायत नंबरों के बीच 181 की शुरुआत की है, जहां हर दिन हजारों की संख्या में महिलाओं के फोन आ रहे हैं। अब हमारा अगला कदम महिलाओं के लिए चार-पांच मोबाइल वैन शुरू करने का है जो खुद पीड़ित महिलाओं तक पहुंचेगी और उनकी मदद करेगी। वहीं जब उनसे महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न के विषय में पूछा गया तो वह तपाक से बोलीं, ‘तहलका’ पत्रिका के मालिक और मुख्य संपादक तरुण तेजपाल द्वारा महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न का मामला हो या फिर गुजरात में एक महिला की गैरकानूनी जासूसी, दोनों के बीच कोई मूलभूत अंतर नहीं है। दोनों ही मामलों में सभी महिलाओं को एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी चाहिए।’ ऐसे मामले जब भी आते हैं तो लगता है कि अभी दिल्ली के लिए और समाज के लिए बहुत कुछ करना है। कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं।

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