पूजा
मेहरोत्रा
कांवड़ में बैठाकर अपने अंधे माता-पिता को तीर्थयात्रा करवाने
वाले श्रवण कुमार लगता है आज भी मौजूद हैं। ऐसे ही एक श्रवण कुमार हैं 35 वर्षीय संतोष वर्मा, जिन्होंने अपने ६३ वर्षीय
पिता सी.पी. वर्मा को मौत के मुंह से निकालने के लिए दो वर्षों में अपना आधा लीवर
और एक किडनी देकर उन्हें नई जिंदगी दी है। संतोष कहते हैं कि ‘ये मेरी जिम्मेदारी है, मेरा फर्ज है। मेरी जगह कोई
और बेटा या बेटी होती तो शायद वह भी यही करती जो मैंने किया है। ये जिंदगी
माता-पिता की ही दी हुई है, यदि यह
उनके कुछ काम आ सके तो इससे बड़ा उपहार उनके लिए क्या होगा?’
जब डॉक्टरों ने संतोष को बताया कि
उनके पिता का लीवर खराब हो चुका है, तब संतोष ने अपना आधा लीवर देकर उनकी
जान अपै्रल २०१२ में बचाई थी। यह ऑपरेशन किया था फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के डॉ. विवेक विज ने।
सी.पी. वर्मा अभी पूरी तरह से स्वस्थ भी नहीं हो पाए थे कि डॉक्टरों ने पाया कि
उनकी दोनों किडनियां भी खराब हैं। दिसंबर २०१३ में उनकी किडनी का प्रत्यारोपण किया
गया। किडनी प्रत्यारोपण किया मैक्स अस्पताल के यूरोलॉजी, रोबोटिक्स और किडनी
ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक डॉ. अनंत कुमार ने। संतोष कहते हैं कि उन्हें किडनी
दान करने के बारे में सोचने में सेकंड भर भी नहीं लगा। ‘हां, मां-पापा को यह समझाने में
भले ही कुछ दिन लग गए। दोनों ने ही मुझे मना किया कि मैं ऐसा न करूं लेकिन मैंने
उन्हें बहुत समझाया, यह
एहसास दिलाया कि पिता का जीवन कितना महत्वपूर्ण है। संतोष कहते हैं कि अंग
प्रत्यारोपण एक चिकित्सीय मामला नहीं है बल्कि हमारे देश में इसके सामाजिक पहलुओं
को देखा जाना चाहिए। अंगदान की बात सुनकर उनकी गर्लफ्रेंड संतोष साथ छोड़ चुकी हैं।
संतोष के एक छोटे भाई भी हैं, जो लंदन में इंजीनियर हैं। यह पूछने पर कि उन्होंने अपना कोई
अंगदान क्यों नहीं किया तो संतोष तपाक से बोले, ‘इसकी जरूरत ही नहीं थी। मैं अपने पिता
की देखरेख कर रहा था और अपना अंगदान कर रहा था और मेरा भाई पूरे परिवार का वित्तीय
बोझ उठा रहा है। यदि हम उसे यहां बुला लेते तो परिवार को वित्तीय मामलों में भी
हाथ फैलाना पड़ता।’
आज भी देश में जब अंगदान आम बात नहीं
है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और फिल्म अभिनेता रितेश देशमुख के पिता
विलासराव देशमुख की मौत भी किडनी खराब होने की वजह से हुई थी और समय पर किडनी न
मिलने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका। डॉ. कुमार बताते हैं कि वे अकेले साल में
करीब २५० तक किडनी प्रत्यारोपण करते हैं और २५ साल के कॅरिअर में १५०० से अधिक
प्रत्यारोपण कर चुके हैं लेकिन संतोष और सी.पी. वर्मा मेरे कॅरिअर का पहला मामला
है जिसमें एक ही डोनर ने एक ही आदमी को अपने दो अंग दान किए हैं। वे बताते हैं कि
अब समय आ गया है कि लोग समाज के प्रति जागरूक हों और अंगदान के लिए आगे आएं। यदि
किसी के परिवार में किसी की दुर्घटना में मौत हो जाती है और चिकित्सक मरीज को ‘बे्रन डेथ’ कह देता है तो ऐसे परिवार
वालों को आगे आकर उस मरीज को अंग दान देना चाहिए। ऐसा इंसान कम से कम ८-१० लोगों
की जान बचा सकता है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, अहमदाबाद, मुंबई जैसे राज्यों में अब
लोग खुल कर सामने आ रहे हैं और वहां करीब १५० से लेकर २५० तक अंगदान होते हैं और कई
लोगों की जान बचाई जाती है लेकिन उत्तर भारत में आज भी लोग वास्तविकता से भागते
हैं और हवन-पूजा आदि के माध्यम से बे्रन डेड के वापस जिंदा होने की उम्मीद करते
हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि हर साल देशभर में करीब १,४०,००० सड़क दुर्घटनाएं होती हैं
जिनमें से ९०,००० लोगों
को मस्तिष्क की चोट लगी होती है। पूरे देश में अभी भी मात्र १० फीसदी को ही
प्रत्यारोपित अंग उपलब्ध होते हैं। अंगदान से लाखों लोगों को नई जिंदगी दी जा सकती
है।
संतोष ने भले ही यह अंगदान अपने पिता
को नई जिंदगी देने के लिए किया हो लेकिन क्या एक ही इंसान का दो साल के भीतर अंग
दान करना सुरक्षित है? डॉक्टर
कहते हैं कि एक बार अंगदान के बाद व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ हो तभी फिर से अंगदान
कर सकता है। डॉ. अनंत कुमार बताते हैं कि किसी भी अंगदाता से अंगदान लेने से पहले
उसके शरीर की पूरी बारीकी से जांच की जाती है। जब यह पुष्टि हो जाती है कि भविष्य
में अंगदाता को यह बीमारी नहीं होगी तभी उससे अंगदान करवाया जाता है। संतोष की
दो-दो बार पूरी जांच करवाई गई थी और जब डॉक्टरों की टीम को पूरा विश्वास हो गया कि
उन्हें आने वाले समय में ऐसी किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं है तभी उनका लीवर
और किडनी ली गई है। ऐसे मामलों में वैसे भी १०,००० में से किसी एक मरीज को बड़ी उम्र
में जाकर इसका कोई खतरा रहता है। वे बताते हैं कि पूरे विश्व में अभी तक ५० लाख
अंगदाता हुए हैं, जिनमें
से मात्र ८० लोगों को अंगदान के २५-३० वर्ष बाद किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ी
है।
संतोष और सी.पी. वर्मा अब पूरी तरह
स्वस्थ हैं और वापस बंगलूरू जा चुके हैं। सी.पी. वर्मा बताते हैं कि वह मधुमेह और
उच्च रक्तचाप के मरीज रहे हैं और बीमारी के चलते उन्होंने ‘वीआरएस’ ले लिया था। वे बताते हैं कि
एक बार लीवर और फिर किडनी देने की बात सुन कर मैंने संतोष को मना कर दिया था लेकिन
लगातार मुझे समझाया गया और मैं समझ पाया कि मेरा बेटा एक किडनी के साथ भी स्वस्थ
रहेगा। उन्हें संक्रमण से शरीर का बचाव करना है और कुछ-कुछ महीनों के बाद चिकित्सक
से जांच करवाते रहना है।
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