क्या हाइबरनेशन में भी
सांप बाहर आता है? विज्ञान कहता है नहीं। ठंड और कड़ाके की ठंड में सांप क्या
कोई भी रेपटाइल (रेंगने वाले जानवर) आपको नहीं दिखेंगे। जिनके घरों में छिपकली का बसेरा रहता
रहा होगा वे जरा अपनी घरों की सभी दीवारों को ध्यान से देखें छिपकली है क्या? नहीं मिलेगी। जैसे ही ठंड
का आभास रेंगने वाले जानवरों को होता है वे दुबक जाते हैं। और तब तक बाहर नहीं
निकलते जब तक मौसम उनके शरीर के अनुकूल न हो जाए। लेकिन हमारे ही देश में एक ऐसा
शहर है जहां 4 डिग्री के तापमान में भी सांप निकलता है और सिर्फ निकलता ही नहीं है
काट भी लेता है। मैं साइंस की स्टूडेंट रही हूं और यह विज्ञान की बहुत बेसिक सी जानकारी
है। यही नहीं मैंने खुद तीन साल लगातार चिडि़याघर पर खबरें की हैं। सरसरी निगाह से
नहीं बल्कि चिडि़याघर में रह रहे जानवरों की बारीकियों को समझते हुए। यही वजह है कि सांप के काटने की खबर मुझे हजम
नहीं हो रही है अब दस साल में शायद सदियों पुराना विज्ञान बदल रहा हो। लेकिन आज से दस वर्ष पहले जब मैंने अपना करियर
शुरु किया था तो मुझे जो खबर करने के लिए कहा गया था वह था चिडि़याघर। हमेशा
नजरअंदाज रहने वाला चिडि़याघर अचानक सुर्खियों में भी आ गया था और मीडिया हाउसों
में मुझे नया नाम दिया था चिडि़याघर और मेरी पहचान बन गया था।
अब खबरें आ रही हैं कि
इंदौर के कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में सफेद बाघ् को सबसे जहरीले सांप कोबरा
ने काट लिया और बाघ मर गया। जू के अधिकारियों को इस बात की जानकारी एक घंटे बाद
मिली। क्या सचमुच शेर की मौत कोबरा के काटने से हो गई या फिर वन विभाग शेर को ठंड
से बचाने के लिए किए गए इंतजामात नाकाफी थे।
आज जब ये खबर देश के सबसे
बड़े समाचार पत्र में पढी तो मैं सदमे में आ गई। अरे ये तो बहुत मामूली सी जानकारी
है बचपन में सातवीं आठवीं में भी शायद विज्ञान कि किताबों में ये पढाया जाता है कि
ठंड में रेंगने वाले जानवर बिलों में दुबक जाते है। आजकल तो कई चैनलों पर जानवरों
और उनसे जुड़ी कई जानकारियां दिखाई जाती है। फिर क्या हमारे बंधुओं को चिडि़याघर
के अधिकारियों से सवालात नहीं करने चाहिए थे? एक सांप बाघ के बारे में डाल दिया और खबर बना दी और आपने फोटो खींच कर चस्पा
दी और वही खबर देशभर को दिखा दी। एक बार मैं अपनी जॉब के सिलसिले में उस समाचार
पत्र के समूह संपादक जी से मिली थी। संपादक जी ने मेरा रेज्यूमे देखने, पढने और
बातचीत के बाद मुझे मिलने के लिए दूर देश बुलाया था। संवेदनशील संपादक साहब ने यह
भी जरूरी नहीं समझा कि लडकी को बुलाया है तो उसके रहने ठहरने की व्यवस्था कंपनी को
करनी चाहिए थी। चलिए ये बात जाने देते हैं मैं उनके लेखों की बड़ी प्रशंसक थी।
लेकिन उनकी संवेदनशीलता देखकर विश्वास जरूर उठ गया। मेरी लेखनी के भी कई प्रशंसक
हैं लड़कियां भी लड़के भी। बातचीत होती है लेकिन यकीन मानिए मैं अगर उनकी किसी बात
से नाराज भी हो जाउं तो मौके का इंतजार करती हूं उनकी गलतियां बताने के लिए।
प्रशंसक है भाई संवेदना जुड़ी है। चलिए ये बातें फिर कभी अब बात उठती है चुने बीने
लोगों की। जब मैं उनसे मिली तो उन्होंने बड़े ही रूखे अंदाज में मुझसे पांच मिनट
तक बात कही और मेरा सारा गुमान उन्हें लेकर जो था वो खत्म होता गया, इसी बीच उन्होंने
अपने आपको महान बताते हुए यह भी कहा कि दिल्ली के पत्रकार प्रेस रिलीज की पत्रकारिता
करते हैं। अब मेरे चुप रहने का सवाल ही नहीं था -इसलिए मैंने भी कुटिल मुस्कान के
साथ कहा सर आप भूल रहे हैं सारी बे्रकिंग न्यूज दिल्ली के गलियारे से ही आती हैं
और सरकारे हिल जाती हैं। उसे दिल्ली के पत्रकार ही दुनिया के सामने लाते हैं। और
तब तक मैं समझ चुकी थी कि संवेदनशील लेख लिखने वाला व्यक्ति संवेदनशील ही हो यह
जरूरी नहीं। कम से कम हमारे दिल्ली के संपादक जिनके साथ मैंने अभी तक काम किया है
वे सभी बहुत संवेदनशील थे। सिर्फ खबरों के मामले में ही नहीं बल्कि पत्रकारों के
मामलों में भी।
अब फिर जरा मुद़दे पर लौटते
हैं। इस सबसे बड़े समाचार पत्र के संपादक जी का ये भी दावा था कि उनके साथ जो भी
काम कर रहे हैं वे एक्सीलेंट हैं। बिलकुल हैं, उनमें से कई मेरे साथी हैं। जिनके
साथ मैंने पुराने संस्थानों में काम किया है। चूंकि मेरे साथियों ने दिल्ली में
पत्रकारिता की है इसलिए वे किसी भी खबर पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करते हैं एक
बार नहीं कई बार क्रास चेक करते हैं और जब तक खुद संतुष्ट न हो जाएं दबाव के बाद
भी खबरे नहीं लिखते। लेकिन जब ठंड में सांप काट ले वह भी शेर को मुझे बात हजम नही
हो रही है। गुस्ताखी माफ हो खबर पढने के बाद वन्य जीव से जुड़े कई विशेषज्ञों को
फोन खटखटाया यही नहीं रेप्टाइल खास कर सांपो से जुड़ी विशेष जानकारियां भी पढ़ी
सभी जगह एक ही बात मिली। अपना तर्जुबा तो बता ही चुकी हूं। तो भाई ये जो ठोक बजा
कर काम हो रहा है और बेरोजगार पत्रकारों को नीचा दिखाया जा रहा है। प्लीज ये गंदा
खेल मत खेलिए मत रखिए अपने संस्थान में लेकिन पत्रकारों को जलील मत कीजिए। खुद को
बेस्ट बताइए आप बेस्ट हैं भी मुझे आपके बेस्ट होने पर कोई शक नही है पर खबरें
शक करने पर मजबूर कर रही हैं। हां एक बात और दूसरों के काम और उसकी क्षमता पर
सवालिया निशान भी मत लगाइए। एक बार और चेक कीजिए क्या सचमुच कोबरा ने बाघ को काटा
या जू के कर्मचारियों ने इस चूने बीने पत्रकार को बेवकूफ बना दिया।
इंदौर. कोबरा सांप के काटने से कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में रहने वाले टाइगर की
मौत हो गई। यह टाइगर दो महीने पहले ही भिलाई से संग्रहालय में लाया गया था। पिंजरे
में घुसे कोबरा के डसने से व्हाइट टाइगर राजन बेहोश होकर गिर पड़ा और उसकी मौत हो
गई। इस घटना से जू प्रबंधन सवालों के घेरे में आ गया है। इंदौर के चिड़ियाघर में सांप निकलने की ये घटना कोई पहली नहीं है। पिछले दो
सालों में यहां 50 से ज़्यादा सांप निकले हैं।आलम ये है कि
सांप पकड़ने के लिए चिड़ियाघर प्रशासन ने गब्बर नामक एक नाथपंथी को खास तौर पर
नियुक्त किया है।गब्बर के मुताबिक उसने पिछले साल तो शेर के बाड़े के पास गड्डा
खोदकर एक सांप निकाला था। ये सांप यहां शेर के बाड़े के पास ज़मीन में घुस गया था।
सन 2012 में सफ़ेद शेर के बाड़े में सांप घुस गया था, हालांकि वो ज़हरीला
नहीं था।दूसरी बार चिड़िया घर में आया है नागराज कोबरा
गब्बर के अनुसार चिड़ियाघर में इसके पहले सिर्फ एक ही बार कोबरा आया था। उसे नाले के पास से पकड़ा था। दरअसल कोबरा प्रजाति के नाग आमतौर पर चहल पहल वाले इलाके मे नहीं रहते ।
गब्बर के अनुसार चिड़ियाघर में इसके पहले सिर्फ एक ही बार कोबरा आया था। उसे नाले के पास से पकड़ा था। दरअसल कोबरा प्रजाति के नाग आमतौर पर चहल पहल वाले इलाके मे नहीं रहते ।
बेहतरीन. लगे रहो !
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