दक्षिण कोरिया के
इंचीयोन मे हुए 17 वे एशियन गेम्स मे जिस तरह से भारतीय मुक्केबाज सरिता देवी के
साथ भेद भाव किया गया उसे पूरे विश्व ने देखा था। भावुक सरिता ने पोडियम पर पदक
लेने से इंकार कर दिया था जिसका खामियाजा उसे एक साल तक भुगतना पड़ेगा। सरिता अब
एक साल तक किसी भी मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेंगी। अंतर्राष्ट्रीय
मुक्केबाज संघ ने सरिता देवी पर एक साल का प्रतिबंध लगा दिया है। संघ ने भारत में
विदेशी कोच फर्नांडीज पर भी दो साल का प्रतिबंध लगाया है। आइबा
का यह मानना है कि सरिता ने पदक न लेकर खेल भावना को चोट पहुंचाई है। लेकिन एक सवाल जो बार
बार उठ रहा है वह यह कि क्या सचमुच अपने खिलाफ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने
वाले को इंसाफ कभी नहीं मिलेगा और खिलाड़ी हमेशा ही प्रतिबंधित किए जाएंगे। क्या
ऐसा नहीं होना चाहिए था कि जब सरिता के साथ भेदभाव किया जा रहा था तभी वहां मौजूद
भारतीय ओलंपिक संघ के अधिकारी अपनी खिलाड़ी के साथ होते और आवाज बुलंद करते । अगर
भारतीय खेल संघ के अधिकारी अपने खिलाडि़यों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे होते
तो आज हमारे खिलाडि़यों का मनोबल न गिरता। सरिता पर एक साल का प्रतिबंध लगने के
बाद क्या अब कोई भी भारतीय खिलाड़ी अपने खिलाफ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने
का साहस करेगा। महिला खिलाड़ी वैसे ही हमेशा हाशिए पर ही रहती रही हैं। कभी
अधिकारी उन्हें मानसिक रूप से परेशान करते हैं तो कभी शारीरिक रूप से। जब खिलाड़ी
आवाज उठाती हैं तो उनका करियर खराब कर दिए जाने की धमकी दी जाती है और करियर का
लालच खिलाडि़यों को चुप रहने पर मजबूर कर देता है।
समय बदल रहा है। सरिता के साथ भारत रत्न मास्टर ब्लास्टर
सचिन तेंदुलकर सहित मैरी कॉम, विजेंदर, योगश्वर दत्त जैसे खिलाड़ी खुल कर बोल
रहे हैं लेकिन एक सवाल जो बार बार उठता है कि आखिर कब तक हमारे खिलाड़ी भेदभाव का
शिकार होते रहेंगे। क्या हमें अपने साथ
हो रहे भेदभाव को हमेशा चुपचाप ही सहना होगा कभी कोई आवाज उठाएगा तो सही होने के
बावजूद उसे प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
खिलाड़ी की भावना देखिए अपने साथ घटित घटना को भुला कर फिर सरिता
रियो ओलंपिक की तैयारी मे जुट गईं हैं। वह कहती हैं मैंने उस घटना को भुला दिया
है। मुझे आगे बढना है और रियो मे पदक जीतना है। सरिता उस समय को याद करते हुए कहती
हैं -भावुक सरिता भारतीय सरिता है, जिसने हमेशा अपने देश के झंडे को ऊंचा रखा है। जब
मुझे तीसरे नंबर पर खड़ा किया गया तो मैं आसुओं पर नियंत्रण नहीं रख पाई और मैंने
मेडल लेने से इंकार कर दिया।
इस बात को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता की जब एक खिलाड़ी
खासकर महिला खिलाड़ी बनती है तो उसे अपना सबकुछ कुर्बान कर देना होता है। वह
महीनों प्रैक्टिस के लिए घर से बाहर रहती हैं तो न केवल वे बल्कि उनका परिवार भी
बहुत कुछ खो रहा होता है। सरिता बताती हैं कि वे पिछले वर्ष प्रेकिटस के लिए कई
महीने तक घर के बाहर रहीं थीं। जब वे वापस आईं तो उनके एक साल के बेटे ने उन्हे पहचाना नहीं, गोद मे लेते ही रोने
लग गया था। जब एक मां देश के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी दे रही हो, अपना सब कुछ दांव
पर लगाती है, जीत जाती है फिर भेद भाव का शिकार होती है तब उसका भावुक होना लाजिमी
है। 1 अक्तूबर 2014 को जब खबरिया चैनलो पर सरिता को रोता हुआ दिखाया तो पूरा देश
सरिता के साथ था सिर्फ इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के अधिकारी कहीं नहीं थे। यदि उन
अधिकारियों ने तभी सरिता के साथ खड़े होने का दम दिखाया होता तो आज भारत की और
सरिता की इतनी किरकिरी नहीं हुई होती। खिलाड़ियों के बदौलत विदेश घूमने का मौका तलाशने वाले
इन अधिकारियों का खेल से कोई लेना देना नहीं होता है यदि वे भी खिलाड़ी होते तो हम
आज पदक तालिका मे आठवे नंबर पर नहीं बल्कि पहले नंबर पर होते। सरिता पदक वितरण
समारोह मे इतनी भावुक हो गईं की उन्होने पदक दक्षिण कोरिया की ही खिलाड़ी पार्क
जीना के गले मे डाल दिया था। सरिता उस मैच की विजेता थी। खेल के मौदान में बैठा हर
एक खेल प्रेमी और मैच का आंखो देखा हाल कह रहे कमेंटेटर भी सरिता को विजेता कह रहे
थे। खैर, किसी भारतीय महिला खिलाड़ी के साथ भेदभाव की यह कोई पहली घटना नहीं है।
भारतीय खिलाड़ी इस तरह के भेद भाव के शिकार होते रहे हैं। बाहर ही क्यूँ उनके साथ
उनके देश मे उनके अपने खेल संघ के अधिकारी भेद भाव करते रहे हैं। ये बात अब किसी
से छुपी भी नहीं है। चक दे इंडिया, मैरी कॉम जैसी अनेक फिल्में इन अधिकारियों की
स्थिति को खुल कर बयां कर रही हैं। आज भले
ही पूरा देश मेरी कॉम की सफलता पर नाज़ करता हो, उन्हे बेस्ट
खिलाड़ी के सम्मान से सम्मानित किया जा रहा हो लेकिन उनका यहाँ तक पहुँचने का सफर
भी आसान नहीं रहा है। पिछले दिनो प्रियंका चोपड़ा अभिनीत मैरी कॉम की जीवन पर
आधारित फिल्म मे पूरे देश ने उनके साथ घटी घटनाओं को भी देखा।
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