Saturday 17 January 2015

इल्‍मी को अब राजनीति का इल्‍म हो चुका है


पूजा मेहरोत्रा
आम आदमी पार्टी की चर्चित नेता शाजिया इल्मी अब भाजपाई हो गईं हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्‍हें पार्टी की सदस्यता दिलाई है। इल्‍मी को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं कि इल्मी ने एलान किया कि वे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। आखिर क्‍यों? फिर कैसे सेवा होगी देश की और जनता की?
आप की सेवा कर चुकीं इल्‍मी को अब राजनीति का इल्‍म हो चुका है इसलिए वो बीजेपी की सेवा करने आईं हैं। क्‍या सचमुच सेवा कर पाने में सक्षम हैं शाजिया?
लोकसभा चुनाव के  वक्‍त एक दिन शाजिया के साथ गुजारा था। शाजिया किसी की सेवा कर सकती हैं या उन्‍हें ही हर कदम पर सेवादारों की जरूरत पड़ती रहती है। शाजिया इतनी कोमल हैं कि हर आधे घंटे बाद थक कर बैठ जाती हैं। लेट जाती हैं। कभी उन्‍हें सिर दर्द की शिकायत होती है तो कभी मितली आने की। कभी पैर दर्द हो जाता है तो कभी गला खराब। मैडम किसी कार्यकर्ता के घर में आराम फरमाती हैं। सेवादार जुटे रहते हैं।  बेचारे कार्यकर्ता कतार में खड़े मैडम की तबियत ठीक होने का इंतजार करते रहते हैं। बुदबुदाते हैं ऐसे कैसे जीतेंगे चुनाव।  
बदलाव प्रक़ति का नियम है। और यदि आपको बदलाव के साथ प्रसिदि़ध भी चाहिए तो राजनीति से जुडि़ए। मौका अच्‍छा था जुड़ गईं राजनीति से। लेकिन क्‍या पता था कि इतनी कठिन डगर है राजनीति की। दो दो बार हार मुंह देख चुकीं शाजिया बहुत अच्‍छे से जानती हैं कि अगर वह तीसरी बार भी हारीं तो पत्रकारिता की तरह राजनीति का करियर खत्‍म हो जाएगा। इसलिए कल तक भाजपा, कांग्रेस को आगाह करने वाली और मुसलमानों को सजग करने वालीं, यह बताने वाली कि हम मुसलमान कमजोर नहीं हैं, हम अपनी रहनुमाई खुद कर लेंगे। आज खुद केसरिया रंग में रंग चुकी हैं। सेवा भाव उमर घुमर रहा है। और जब सब कुछ आराम से मिल रहा हो तो क्‍या जरूरत है दौड़ने भागने की।  
गंदगी, कीचड़, कूड़े का ढेर देखते ही बीमार हो जाने वाली ये नेता दीदी बहुत अच्‍छे से समझती हैं कि चुनाव-चुनाव  खेलना बच्‍चों का खेल नहीं है। इसमें दिनरात एक कर देना पड़ता है। राजनीति नेता को बीमार होने की इजाजत नहीं देती है।  ऐसे में जब देश की सबसे बड़ी विजेता पार्टी आगे बढ़ कर उन्‍हें बुला रही हो तो इसमें बुराई क्‍या है। मार्केट तो यूं ही गर्म है। जरूरत क्‍या है चुनाव लड़ने की। शाजिया बहुत अच्‍छे से समझती हैं कि जब हारे हुए नेता केंद्रीय मंत्री पद पर विराजमान हैं तो उन्‍हें भी बिना चुनाव लड़े कोई न कोई बेहतरीन विभाग मिल ही जाएगा।
आज राजनीति का मतलब खबरिया चैनलों पर बैठकर आरोप प्रत्‍यारोप लगाना भर रह गया है। जो जितना लंबा चौड़ा आरोप लगाता है वह उतना बड़ा नेता घोषित हो जाता है। शाजिया का पत्रकार दीमाग इन बारीकियों को बहुत अच्‍छे से समझ चुका है। इसका फायदा उठाते हुए उन्‍होंने आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा है। वे कहती हैं कि जिस बदलाव के लिए और आम आदमी को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पार्टी का गठन हुआ था, वे सारे मुद्दे गायब हैं। वे बताती हैं कि उन्‍हें पार्टीं में बहुत अपमान सहना पड़ा है। शाजिया अपने साथ हुए अत्‍याचार के खिलाफ एक किताब भी लिख रही हैं। बहन  शाजिया आर के पुरम और गाजियाबाद की समस्‍या को बहुत अच्‍छे से समझ चुकी थीं। शायद यही वजह थी कि गाजियाबाद चुनाव के दौरान उनके कार्यकर्ता उनसे कतराने लगे थे। शाजिया गाजियाबाद में प्रचार के दौरान आदतन एक दिन में हर आधे घंटे बाद एक डेढ घंटे के लिए बीमार पड़ जाती थीं। वे किसी कार्यकर्ता के घर में आराम फरमाती थीं और दुखी कार्यकर्ता इसी उधेड़ बुन में रहते थे कि ऐसे कैसे चुनाव जीतेंगे। जयजयकार लगाते प्रशंसक दबी जुबान से अपनी नेता और पार्टी की कार्यप्रणाली पर ही संदेह करने लगते थे। शाजिया अब ज्ञानी हो चुकी हैं। बिना मैदान में उतरे यह मानने लगी हैं कि नकारात्‍मक और अराजकता वाली राजनीति का दौर खत्म हो गया है। अब सकारात्मक राजनीति की जरूरत है। अब बदले से बदलाव की राजनीति नहीं चल सकती।



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