Wednesday 25 February 2015

हमारी भी सुनिए प्रभु जी



पूजा मेहरोत्रा
रेलगाडी यानि हमारी पहचान। हमारी यानि आम लोगों की पहचान। आज हमारे रेल मंत्री रेल बजट पेश करेंगे। अब सारी बातें तो उनकी अटैची में लिख कर बंद हो चुकी होगी। खबरिया चैनल से लेकर अखबार पत्रिका तक रेल से जुडे कई कई पहलुओं पर बात कर रहे हैं। मुझ पूजा की भी एक प्रार्थना है, मैं सिर्फ रेल में ही सफर करती हूं वह भी स्‍लीपर में। मेरी भी प्रार्थना रेल मंत्री जी तक पहुंचा दो कोई। प्रभु जी कुछ ऐसा चक्र चलाओ की हम बिहारियों को त्‍यौहार के दिनों में कनफर्म टिकट आसानी से मिल जाया करे। देश के हर कोने में हम बिहारी मौजूद हैं बेचारे लगने लगते हैं कभी कभी। हर त्‍यौहार में हम तीन महीने पहले टिकट लें या फिर चार महीने पहले ये वेंटिंग टिकट हमारी जान मारे है। अब तो तत्‍काल में भी वेंटिंग  मिलता है और प्रीमियम ट्रेन तो बिलकुल प्रीमियम नहीं लगती है। त्‍यौहार के दिनों में हमें बाथरूम के पास, चलने फिरने की जगह पर यात्रा करनी पडती है।

ट्रेन में मेरी बहनों, माताओं की सुरक्षा पहली आवश्‍यकता है। बुजुर्गों के लिए भी कुछ सोचिए। जिन बुजुर्गों को नीचे की बर्थ नहीं मिल पाती उनका ट्रेन में सफर कितना कष्‍टदायक होता है आप नहीं समझेंगे प्रभु जी। असंवेदनशील लोग उन्‍हें नीचे की बर्थ तक नहीं देते। दर्द स‍मझिए। कोई कारगर कदम उठाइए। आरपीएफ के जवान जो यात्रियों की सुरक्षा के लिए लगाए हैं उन्‍हें संवेदनशीलता का पाठ पढाइए। रक्षक ही भक्षक बन माताओं बहनों पर अपनी नजरें गडा देते हैं। भोली भाली माताओं बहनों को चलती ट्रेन से फेंक भी देते हैं।

 जब भी अलीगढ, खुर्जा और मेरठ जैसे लोकल एरिया से ट्रेन गुजरती है तो यहां के डेली पैसेंजर आरक्षित ट्रेन में घुसकर माताओं बहनों के साथ ही नहीं बुजुर्गों तक से बुरा व्‍यवहार करते हैं। वो आराम से बैठते हैं और जो लंबी दूरी के सफर करते हुए आ रहे होते हैं मत पूछिए उनका हाल। एक आध बार हम राजधानी ट्रेन में भी चढे हैं। क्‍या बताएं प्रभु जी बहुत बुरा हाल है कॉकरोच घूमते रहते हैं। ट्रेन में बदबू आ रही होती। चादरें बिना धुली, मुडी चुडी तह लगाकर दे दी जाती है। तकिया पर चढा गिलाफ बदबू मारता है। कंबल तो पता नहीं कब से ड्राइक्‍लीन नहीं हुआ होता। एक और ट्रेन है गरीब रथ। नाम की ही तरह बिलकुल गरीब ट्रेन है। साफ सफाई तो जाने दीजिए अटेंडेंट तक दारू के नशे में मिलता है। बाथरूम में पानी तक नहीं होता। छिटकनी तक नहीं होती। अकेली लडकी का सफर इस ट्रेन में तो नामुमकिन ही है। इस ट्रेन से सफर करने के बाद मैंने कसम ही खा ली। अब कभी इस ट्रेन में सफर  नहीं करूंगी। नहीं किया।  
ओह प्रभु जी, बजट बनाने से पहले अगर आप एक महीने में किसी ट्रेन से यात्रा कर लेते तो आपको वास्‍तविकता बतानी ही नहीं पडती। कभी आम लोगों की तरह सफर कीजिए अधिकारियों को बिना बताए। सलून पर तो आपके लिए सुविधाएं ही सुविधाएं रहती हैं। उसमें सफर कर आप हम लोगों का दर्द नहीं समझ पाएंगे और न ही कभी हमसे जुड् पाएंगे।


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