महिलाओं के लिए आरक्षित कोच
में होता है पुरुषों का कब्जा
रात में मेट्रो में सफर
करने वाली महिलाएं बिलकुल सुरक्षित नहीं
पूजा मेहरोत्रा
दिल्ली मेट्रो महिलाओं के
लिए रात में बिलकुल सुरक्षित नहीं रही है। जिस तरह से रात में सुरक्षा की लचर व्यवस्था
देखने को मिलरही है वह दिन दूर नहीं जब महिलाओं के साथ मेट्रो में कोई बड़ी वारदात
होगी। मेट्रो के आगे और पीछे के डिब्बे आरक्षित कर देने और सीसीटीवी कैमरे लगा
देने भर से ही महिलाएं सुरक्षित नहीं हो जाएगीं। जिस तरह से रात में काम से लौट
रही महिलाओं की सुरक्षा को दिल्ली मेट्रो और सीआइएसएफ द्वारा नजर अंदाज किया जा
रहा है आने वाले चंद दिनों मे महिला के साथ कोई बड़ी घटना और दुर्घटना की खबर
आएगी।
एक महीने में यह दूसरी बार है जब मैं रात में 10
बजे के बाद मेट्रो में ट्रेवल कर रही थी। अब ये मत कह दीजिएगा कि मैं इतनी रात में
सफर ही क्यों कर रही थी। अक्सर जब कोई बड़ी घटना महिला के साथ घटित होती है तो
पूरा दोष पीडि़त पर मढ दिया जाता है। इसलिए महिलाएं अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद कर
लें। 26 जून की रात 10:40 बजे मैंने हॉज खास स्टेशन से कशमीरी गेट के लिए मेट्रो
ली। महिलाओं का कोच महिलाओं से खचा खच भरा हुआ था। अभी मेट्रो जोर बाग तक पहुंची
थी कि मेरे बड़े भाई अतुल मेहरा का फोन आया मेट्रो मिली या नहीं,
मैंने कहा मिल गई। घर पहुंच कर फोन करती हूं।
उन्होंने पूछा लड़कियां है मेट्रो में, मैंने
कहा हां सीटें सारी फुल हैं। वह अब निश्चिंत हो गए थे कि बहन सुरक्षित पहुंच
जाएगी। कशमीरी गेट पर पहुंचते हुए लोग रिठाला और दिलशाद गार्डेन की मेट्रो के लिए
लगभग भाग रहे थे। तीन फ़लोर तक दौड़ लगानी थी। मैं भी दौड़ रही थी। जैसे ही हांफती
हांफती थर्ड फलोर पर पहुंची मेट्रो स्टेशन पर प्रवेश कर रही थी। भीड़ देखते हुए मैं
महिलाओं के लिए आरक्षित आखिरी कोच की ओर भागी। भागते हुए सोंच रही थी कोच तो खाली
ही होगी। लेकिन जैसे ही मैं कोच में दाखिल हुई बैठने की जगह नहीं थी इक्का दुक्का
लोग खड़े ही थे। सारी सीटें पुरुष यात्रियों के कब्जेमें थी।
मैं डिब्बे की हालत देख
अचंभित थी, मैंने पूछा ये आखिरी डिब्बा है न,
पुरुष सवारियों ने कहा जी
हां,
मैंने पूछा क्या फिर से
महिलाओं का कोच आगे वाला कर दिया गया है, चूंकि वे नियमित यात्री थे उन्होने कहा
नहीं आखिरी कोच ही महिलाओं का है
मैंने पूछा फिर आप लोग,
जवाब आया काम से काम रखो,
मेट्रो में काम करती हो क्या या पुलिस हो
मैंने कहा जी महिला हूं और
ये कोच महिलाओं के लिए मेट्रो कॉरपोरेशन ने आरक्षित किया है
लगभग सारे पुरुष यात्री मुझ
पर हंस रहे थे
मैंने उन्हें नजरअंदाज
करते हुए टैबलेट निकाला फोंटो खींचने लगी, यात्री बोला आप फोटो ले रही हैं वर्जित
है,
मैंने कहा आप भी इस कोच में
वर्जित हैं। सारे हंस दिए
मैंने सीआइएसएफ की हेल्प
लाइन नंबर पर फोन लगाया ट्रेन कशमीरी गेट से निकल कर शास्त्री पार्क पहुंच रही
थी। तीसरी रिंग में हेल्प लाइन पर बैठे सिपाही ने फोन उठा लिया,
मैंने पूछा क्या फिर
महिलाओं का कोच रिठाला से दिलशाद गार्डेन की रूट पर आगे वाला कर दियागया है, बोला
नहीं मैंडम पीछे वाला ही है
मैंने पूछा आपके जवान अभी
ड़यूटी पर होंगे
जवाब आया जी हैं,
मैंने कहा शास्त्री पार्क आने वाला है जवान
भेजिए महिलाओं का कोच खाली करवाइए
जवाब आया मैसेज दे दिया है
मैडम
शास्त्री पार्क आया, ट्रेन
रुकी कुछ यात्री उतरे ट्रेन चल दी
मैंने फिर फोन घुमाया मैंने
कहा कोई जवान नहीं आया
तब तक मैंने दिल्ली मेट्रो
के पीआर के शायद अब जीएम अनुज दयाल को फोन लगाया, घंटी जाती रही, शायद सीलमपुर स्टेशन
भी निकल गया। मैंने अनुज दयाल जी को संदेश भेजा जिसमें मैंने मेटा्े के हालात से
उन्हें अवगत कराया। ट्रेन शाहदरा स्टेशन क्रास कर चुकी थी अभी तक सीआइएसएफ का
कोई जवान महिलाओं के आरक्षित कोच से अनाधिक़त रूप से पुरुषों के कब्जे से छुडाने
नहीं आए। अब कुछ महिलाएं मेरा मुंह देख रही थीं।
मानसरोवर मेट्रो स्टोशन पर
एक बल्ष्टि सरदार जवान वॉकी टॉकी के साथ अाया और मेट्रो के बाहर से चिल्लाते हुए
लोगों को दूसरे कोच में जाने के लिए कह गया।
पुरुष गए या नहीं गए उसने
देखने की जहमत भी नहीं उठाई।
मेट्रो खाली हो रही थी।
लेकिन आज एक बार फिर लगा कि क्या सचमुच महिलाएं सुरक्षित हैं।
चार पांच महिलाएं कोच में
बैठी थी जो मुझे शायद गौर से देख रही थीं, बोली दीदी थैंक्स, मैंने पूछा किस बात
के लिए, बोली आज आपने उन सबको सबक सिखाया, आपके एक फोन से एक्शन हुआ, मैं तो रोज
जाती हूं और इसमें इसी तरह पुरुष यात्री सफर करते हैं।
मैंने पूछा आपने शिकायत नहीं की, मैंम आप जिस
तरह से अधिकारी से बात कर रही थी वैसे हमें बात करनी नहीं आएगी। सभी महिलाओं की
नजर में मैं हिरोइन बन चुकी थी।
एक ने पूछा मैंम आप पुलिस
में हैं न,
मुझे हंसी आई मैंने कहा
नहीं बिल्कुल नहीं। दूसरी महिला ने कहा दीदी आज आपको देखकर लग रहा है कि आवाज उठाओ
तो सुनी जाती है। ट्रेन दिलशाद गार्डन पहुंच चुकी थी।
मैं मुस्कुरा रही थी और वो
मेरा तालियों से स्वागत कर रही थीं।
लेकिन मैं फिर कहती हूं दिन
में तो महिलाएं सुरक्षा कर लेंगी रात में रक्षा की जरूरत है।
लगभग एक महीने पहले मैंने
मेट्रो में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाललिया निशान लगाया था, तभी पिछले दिनों एक
पुरुष यात्री द्वारा ट्रेन में शूशू करती फोटो किसी वकील द्वारा पोस्ट किए जाने
पर भी काफी बवाल उठा था और आज रात महिलाओं की कोच में पुरुष यात्रियों का सफर करना
मेट्रो की लचर व्यवस्था को उजागर करता है वहीं महिलाओं की सुरक्षा पर भी सवालिया
निशान लगाता है। जिस प्रकार महिलाओं के कोच में पुरुषों का कब्जा रात में रहने लगा है, ऐसा लगता है कि बहुत जल्दी मेट्रो में महिलाओं के साथ कोई बड़ी
घटना और दुर्घटना की खबर आएगी।
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