किसी भी पैरंट के
लिए यह चिंता की बात होगी कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली बीमारी का शिकार उसके बच्चे
भी हो सकते हैं। आजकल डायबिटीज, मोटापा, हाई बीपी, थॉयरॉइड जैसी बीमारियां आम हो गई हैं। ऐसे में जब आप इनका
इलाज करवाने के लिए डॉक्टर के पास जाएंगे, तो एक सवाल डॉक्टर आपसे जरूर पूछते हैं कि क्या आपके
पैरंट्स या किसी और संबंधी को ऐसी बीमारी है या हुई थी? बुरे जीन की वजह से होने वाली बीमारियों
और उनके इलाज के बारे में एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं पूजा मेहरोत्रा:
कुछ समय पहले ही
एक खबर काफी चर्चा में रही थी कि हॉलिवुड अभिनेत्री एंजेलिना जॉली स्तन कैंसर से
बचने के लिए डबल मास्टेक्टमी करवा कर अपने दोनों ब्रेस्ट हटवा चुकी है। यही नहीं
उन्होंने कैंसर के खतरे को देखते हुए अपना गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब भी निकलवा
दिए हैं। उन्हें कैंसर हुआ नहीं था, बल्कि जांच के दौरान डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि कैंसर के
लक्षण तेजी से उभर रहे हैं। एंजेलीना ने जब अपनी जांच कराई तो पता चला था कि उनके
शरीर में बीआरसीए1 जीन है जो स्तन और गर्भाशय के कैंसर के
लिए जिम्मेदार है और वह तेजी से फैल रहा है। इससे कैंसर होने का खतरा है। चूंकि
एंजेलिना की मां और नानी की मौत गर्भाशय के कैंसर की वजह से हुई थी। इसलिए उनमें
बीआरसीए1 जीन, नानी और मां के जरिए से आने का खतरा था, इसलिए वह समय-समय पर अपनी जांच कराती
रहती थीं। इंडिया में इतना बड़ा स्टेप उठाने की बात अभी तक सामने नहीं आई है। पर
इसकी तैयारी साथ में की जा सकती है। हम सजग रह सकते हैं।
गुणों का गणितः हमारा शरीर अरबों सेल के मिलने से बना
है। हर सेल में 46 (23 जोड़े) क्रोमोजोम्स होते हैं। जबकि
स्पर्म या ओवम में सिर्फ 23 क्रोमोजोम ही होते हैं। जब फर्टिलाइजेशन
होता है तो दोनों के मिलन से जो एम्ब्रियो बनती है, उसमें भी 46 क्रोमोजोम हो जाते
हैं। ये क्रोमोजोम, डीएन, आरएनए और प्रोटीन्स के बने होते हैं। क्रोमोजोम्स मतलब
गुणसूत्र, यानी शरीर के गुण-अवगुण को आगे की पीढ़ी
में पहुंचाने वाला। अमूमन शरीर के डीएनए या आरएनए में कई जींस मिलते हैं। यानी एक
क्रोमोजोम पर कई जींस हो सकते हैं। इनमें से कुछ जींस ऐक्टिव होते हैं और कुछ का
कोई काम नहीं होता है। सीधे शब्दों में कहें तो ये क्रोमोजोम्स ही हैं जो अलग-अलग
कैरेक्टर्स को पैरंट्स से बच्चों तक ले जाते हैं। इनमें कई बार कुछ बीमारियां भी
ट्रांसफर हो जाती हैं। चूंकि ये बीमारियां जींस या क्रोमोजोम्स की वजह से आगे जाती
हैं, इसलिए इन्हें ही जनेटिकल या हिरेडिट्री
डिजीज कहते हैं।
जनेटिक बीमारी या
आनुवांशिक बीमारियां: - हमारे शरीर में लगभग 25000 से ज्यादा जीन पाए जाते हैं। जीन में कई
बार ऐसी बीमारियां पाई जाती हैं जो वातावरण या जीन में किसी तरह की गड़बड़ी से
होती हैं। परिवारिक इतिहास में ऐसी बीमारी नहीं होती है।
- इसे ऐसे भी समझ
सकते हैं कि कुछ दिनों पहले एक खबर आई कि एक गरीब के घर में 3-4 साल की उम्र के तीन ऐसे बच्चे हैं जो आम
बच्चों से ज्यादा मोटे-तगड़े हैं और एक बार में ढेर सारा खाना खा जाते हैं। ऐसा एक
जनेटिक बीमारी की वजह से होता है लेकिन बीमारी हिरेडिट्री नहीं। कई बार ऐसा भी
सुनने को मिलता है कि किसी बच्चे को आंसू की जगह खून निकलता है। ऐसी बीमारियां
जनेटिक होती हैं लेकिन आनुवांशिक नहीं कि पीढ़ी-दर-पीढी चलती रहें।
- इनमें थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, डायबिटीज, हाई कॉलेस्ट्रॉल, हार्ट डिजीज कुछ ऐसी आनुवांशिक बीमारियां हैं जिनका रोकथाम
बहुत जरूरी है।
- सारे कैंसर
आनुवांशिक नहीं होते हैं। कुछ ही कैंसर ऐसे हैं जो पीढी-दर-पीढी आगे बढ़ते हैं।
पीढी-दर-पीढी होने वाले कैंसर में युवा अवस्था में होने वाले कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, गर्भाशय का कैंसर और किडनी का कैंसर
मुख्य है।
कब चांस ज्यादाः - यदि कोई बीमारी माता और पिता के दोनों के
परिवार में चली आ रही हे तो उस परिवार के बच्चे को वह बीमारी होने का खतरा 100 फीसदी तक होता है।
- ईरान-इराक, सउदी अरब सहित उन कम्यूनिटिज में जहां
परिवार में ही विवाह करने का प्रचलन है, वहां आनुवांशिक बीमारियों के ज्यादा चांसेज होते हैं। भारत
में गुजरातियों, सिंधियों और लोहाणी में एक ही परिवार में
शादी करने का प्रचलन है, जिसकी वजह से आनुवांशिक बीमारियां होती
हैं।
- हमारे देश में इस
तरह का चलन बहुत ही कम है कि शादी से पहले लड़का या लड़की के परिवार की हेल्थ
स्टेटस को जानने का कोशिश हो लेकिन ऐसा करना आगे के लिए फायदेमंद हो सकता है। यह
सिस्टम अभी हमारे देश में ज्यादा चलन में नहीं है, पर यूरोप, अमेरिका में इस
तरह की बात आम है।
- जब शादी करें तो
परिवार में बीमारियों की जांच पड़ताल करें। ऐसा मुमकिन नहीं कि किसी परिवार में
कोई बीमार ही नहीं हुआ हो। 50 के बाद डायबिटीज या
हाई बीपी जैसी बीमारियां आजकल आम हैं। इसलिए इस आधार पर रिश्ता नहीं करना सही
निर्णय नहीं होगा। पर किसी परिवार में अगर कम उम्र में कैंसर जैसी खतरनाक
बीमारियों की वजह से मौत का इतिहास रहा है तो शादी करने का फैसला लेने से पहले एक
बार जरूर सोचें।
कैसे लड़ें जनेटिक बीमारी
सेः - जनेटिक बीमारी होने के बाद उससे निपटना
मुश्किल है लेकिन बच्चे के पैदा होने के पहले ऐसे उपाय किए जा सकते हैं कि कुछ
जनेटिक बीमारियां उसमें ट्रांसफर न होंने पाएं। ऐसे में आईवीएफ जैसी तकनीक की मदद
ली जा सकती है।
- कभी-कभी देखा जाता
है कि कोई महिला नेचरली कंसीव नहीं कर पातीं। ऐसे में वह आईवीएफ (इन विट्रो
फर्टिलाइजेशन) तकनीक का सहारा लेती हैं।
- इस तकनीक के
द्वारा भारत में डायबिटीज, कैंसर, हाई बीपी जैसी बीमारियों को एम्ब्रियो स्टेज में ठीक करना
मुमकिन नहीं है।
- दूसरी बीमारियों
जैसे थैलीसिमिया, बार-बार अबॉर्शन, सिस्टिक फाइब्रोसिस, डाउन सिंड्रोम, हीमोफीलिया और मंगोलिज्म आदि से बचा जा
सकता है।
- आईवीएफ के द्वारा
एक साथ कई एम्ब्रियो तैयार किए जाते हैं। ऐसे में यह मुमकिन है कि बायॉप्सी या
दूसरे तरीके से एम्ब्रियो की जांच करके ठीक हो सकने वाली बीमारियों के बारे में
पता कर लिया जाएं। ऐसे में बुरे जीन के असर वाले एम्ब्रियो की जगह हेल्दी
एम्ब्रियो इंप्लांट किया जा सकता है।
गर्भधारण के दौरान रहें
सतर्कः - बच्चे की प्लानिंग से पहले डॉक्टर को
परिवार में बीमारियों के इतिहास के बारे में बताएं।
- गर्भधारण करने के
लगभग दो महीने पहले से ही डॉक्टर की सलाह लें। इससे आने वाले बच्चे को पारिवारिक
बीमारियों से बचाने के लिए कई तरह की दवाएं और फॉलिक एसिड के साथ कई जांच कराई
जाती हैं।
- गर्भधारण के बाद
भी महिलाओं को दो महीने तक खास दवाएं और टेस्ट जारी रखा
जाता है।
- गर्भधारण के बाद
भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर की सलाह लेती रहनी होती है। पूरे इलाज में महज 15 से 20 हजार का खर्च आता है।
- यदि किसी पुरुष के
परिवार में गंभीर बीमारियों का इतिहास रहा है तो वह स्पर्म बैंक से ऐसे खास तरह के
हेल्दी स्पर्म की मांग कर सकता हैं, जिसके परिवार में बीमारियों का पीढ़ी-दर-पीढ़ी ट्रांसफर रुक
जाए।
कब कराएं जांच? - यदि किसी परिवार में 55 की उम्र में कैंसर या हार्ट डिजीज का पता
चला है तो उस परिवार के नौजवान को 40-45 की उम्र में जांच कराना शुरू कर देना चाहिए।
- परिवार में किसी
दादी, नानी, बुआ या मासी को 45-50 की उम्र में ब्रेस्ट कैंसर, गर्भाशय का कैंसर हुआ हो तो उस घर की महिलाओं को 30-35 साल की उम्र से ही जांच करवानी शुरू कर
देनी चाहिए।
- जल्दी जांच से
बीमारी के गंभीर होने से पहले ही उसका पता लगा कर जल्दी इलाज कराया जा सकता है।
रिश्तेदारों पर पैनी नजरः - यदि कोई बीमारी परिवार में
पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है तो अभी सतर्क हो जाएं।
- सिर्फ पिता के
परिवार में होने वाली बीमारियां ही आने वाली पीढी को ट्रासंफर नहीं होती है बल्कि
मां के परिवार की बीमारियां भी ट्रांसफर होती है।
- पिता की ओर के
रिश्तेदार जैसे बाबा, दादी, चाचा, ताऊ और बुआ और इस
रिश्ते में आने वाले भाई बहन और मां के परिवार के रिश्तेदारों में नाना-नानी, मौसी और मामा, ममेरे भाई बहन के बारे में जानकारी रखें।
अमूमन इनसे आप कॉमन जीन शेयर करते हैं। ऐसे में इनमें होने वाली हर बीमारी आपके
लिए अलार्म की तरह है।
कितने जींस, कितनी बीमारियां: - इंसानी शरीर में एक लाख से ज्यादा जीन और
क्रोमोसोम हैं।
- इनमें से तकरीबन 25000 जींस के गुणों और अवगुणों का पता लगाया
जा चुका है।
- इनमें से करीब 2000 किस्म के जनेटिक टेस्ट भी मौजूद हैं।
- माना जा रहा है कि
आने वाले सालों में इंसान के जीन का विश्लेषण करके संभावित बीमारियों के खतरों से
आगाह करना मुमकिन होगा।
कैंसर का जींस कनेक्शन: - कैंसर के लिए 40 फीसदी मामले तंबाकू के सेवन की वजह से, 20 फीसदी मामले इंफेक्शन की वजह से (वायरल, सिरविक्स आदि), 10 फीसदी लाइफस्टाइल से जुड़े और महज 10 फीसदी ही जनेटिक होते हैं।
- 20 फीसदी कैंसर ऐसे
होते हैं, जिनके कारणों का पता नहीं चल पाता है।
तरह-तरह के जनेटिक डिजीज
क्रोमोजोमल एबनॉर्मलिटीज: जब शरीर में क्रोमोजोम की संख्या तय
संख्या से कम या ज्यादा हो जाए। इनमें डाउन सिंड्रोम (जब 21वां क्रोमोजोम अतिरिक्त जुड़ जाए यानी 46 की जगह 47 हो जाए ), टर्नर सिंड्रोम
(जब एक एक्स क्रोमोजोम कम हो जाए यानी सेल में कुल क्रोमोजोम 45 ही रहे) का नाम अहम हैं। कई बार
क्रोमोजोम्स का कोई पार्ट ही मिस हो जाता है उसे डिलीशन कहते हैं। जब क्रोमोजोम का
अरेंजमेंट गलत हो तब उसे ट्रांसलोकेशन कहते हैं।
सिंगल जीन डिसऑर्डर्स: जब किसी बीमारी के लिए एक ही जीन
उत्तरदायी हो। मसलन, सिस्टिक फाइब्रोसिस, सिक्ल सेल एनीमिया आदि। वहीं एक्स लिंक्ड
डिजीज में हीमोफिलिया का नाम लिया जा सकता है।
मल्टीफेक्टोरियल
प्रॉब्लम्स: जब एक नहीं कई जींस की वजह से कोई
परेशानी हो जाए। इसमें वातावरण से होने वाली समस्या को भी शामिल कर सकते हैं। मसलन, जब ब्रेन या स्पाइन में कोई प्रॉब्लम हो।
टेरेटोजेनिक प्रॉब्लम: जब किसी गलत दवाई, केमिकल, इंफेक्शन आदि की वजह से ऐसी समस्या हो। इन्हें दूर करने के
लिए यह जरूरी है कि आप किसी जनेटिक काउंसलर की मदद लें। वह आपके डीएनए की जांच कर
ही सही तथ्यों को बता पाएंगे।
लें आयुर्वेद, नैचरोपैथी और योग का
सहारा: - आयुर्वेद व नेचुरोपैथी में बीमारी कोई भी
हो खान पान का ध्यान रखना, जीवनशैली में बदलाव, एक्सरसाइज और थेरपी से कई बीमारियों की
रोकथाम मुमकिन है।
- डायबीटीज, कैंसर, गंजापन आदि के इतिहास वाले परिवार के लिए कई प्रकार की
नैचरोपैथी थेरपी हैं। ऐसे परिवार जिनमें इन बीमारियों का इतिहास रहा है उन्हें
अपनी आने वाली जेनरेशन को गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए बच्चों को 16 से 17 की आयु में ही सजग कर देना चाहिए। इससे बचाव के लिए
आयुर्वेद में थेरेपी शुरू किया जाता है। इस इलाज में योग एक बहुत सहायक होता है।
आयुर्वेद में जहां गंभीर बीमारियो के लिए इलाज की शुरुआत डिटॉक्सीफिकेशन से होती
है। 21 दिनों तक चलने वाले इस इलाज में शरीर से
सभी अशुदिधयों को दूर करने के लिए योग से लेकर कई प्रकार की थेरेपी और खान पान का
खास ध्यान रखा जाता है। पंचकर्मा द्वारा भी बीमारी की रोकथाम की जाती है। उम्र
बढने के साथ साथ यह प्रक्रिया छह महीने फिर तीन महीने में एक बार किया जाता है।
जिनके परिवार में
डायबिटीज का इतिहास रहा है इसे लाइफस्टाइल डिजीज भी कहा जाता है इस लिए ऐसे मरीजों
के लिए विशेष पद्धतियां मौजूद हैं। जो बीमारी को आने वाली पीढी में जाने से जीन को
शुद्ध करती है। आयुर्वेद का सहारा लेकर खुद को आने वाली पीढी को गंभीर बीमारी से
बचा सकते हैं।
ऐसे मरीजों को साल
में एक बार 25 दिनों तक विभिन्न प्रकार के इलाज के लिए
आश्रम में रखा जाता है। रुटीन लाइफ और थेरेपी दी जाती है, योग और मेडिटेशन भी इस थेरेपी अहम किरदार
निभाते हैं।
किस बीमारी में कितना
चांस
|
बीमारी
|
परसेंटेज
|
पैरेंटेस
|
थैलेसीमिया
|
100
|
माता-पिता दोनों
|
थैलेसीमिया
|
50
|
माता या पिता में से
किसी एक को
|
हीमोफीलिया
|
100
|
माता-पिता
|
हीमोफीलिया
|
50
|
माता या पिता
|
कैंसर (ब्रेस्ट, सिरविक्स)
|
10-20
|
मां, मौसी, बुआ, नानी, दादी, बहन
|
कैंसर (किडनी, लंग)
|
10
|
(परिवार
में यदि किसी को है)
|
अल्जाइमर
|
10-20
|
फीसदी( यदि परिवार में
किसी को है)
|
थायरॉयड
|
20-30
|
परिवार में मां या बाप
किसी को है
|
डायबिटीज
|
50 : 50
|
यदि परिवार में है तब
भी जीवनशैली और खानपान बदलकर इसे रोकना मुमकिन है
|
हाई कॉलेस्ट्रॉल
|
50 : 50
|
यदि परिवार है तब भी
जीवनशैली और खानपान बदलकर इसपर रोकथाम संभव है
|
हार्ट की बीमारी भी
|
50 : 50
|
यदि परिवार में लगातार
चली आ रही है
|
गंजापन
|
50 : 50
|
यदि मां और पापा के
दोनों के परिवार में चली आ रही है
|
अस्थमा
|
50 : 50
|
|
ब्लड प्रेशर
|
50 : 50
|
|
आर्थिरोसेलेरोसिस
|
70 से 80
|
|