सम्मान और इज्जत की हकदार होती बेटियां
सेल्फी विथ रिस्पेक्ट, नो रेप नो छेडछाड
पूजा मेहरोत्रा
बेटियों के साथ सेल्फी
देखकर मन गदगद है। क्या लकी है वह बेटियां जिनके पिता अपनी बेटियों के साथ फोटो
खींच कर ऐसे चस्पा रहे हैं जैसे बेटियां ही उनकी दुनिया हों, यही
नहीं बेटियों के लिए बहुत खूबसूरत लाइनें भी लिख रहे हैं। मन गर्व से फूल रहा है, वाह
समय बदल रहा है। शायद अब महफज
रहेंगी बेटियां। इज्जत मिलने लगेगी बेटियों को। अब नहीं छली जाएंगी बेटियां। अब
नहीं फेंका जाएगा बेटियों पर तेजाब नहीं लुटेगी उनकी इज्जत। बेटियों को बाप भाई मां और परिवार वाले जायदाद में जगह दें न दें कम से कम फेसबुक पर जगह दे रहे हैं। लेकिन ये भी
नहीं भूलना चाहिए कि मतलबी बाप अपना फायदा ही तलाश रहा है। वे दिखाने में पीछे नहीं रहना चाहते कि बेटी है तो सबकुछ है। लेकिन एक सवाल
बार बार कौंध रहा है कि क्या ये बाप भाई महिलाओं की इतनी ही इज्जत भी दे पाएंगे
जितनी फेसबुक पर जगह दे रहे हैं।
मोदी जी आप तो चमत्कारी बाबा हो गए हैं।
मोदी जी आप तो चमत्कारी बाबा हो गए हैं।
आपकी मन की बात तो लोगों के दिल की बात बनती जा रही है। सेल्फी विथ डॉटर की
बात हो या फिर खादी के रुमाल रखने की आपकी बातों का चमत्कार तो हमने देख लिया। अगर
इसके साथ बाप बेटियों को इज्जत दिए जाने की बात भी लगे हाथ कर देते तो शायद
बेटियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार भी ख्त्म हो जाते। बेटी तो तभी पढेगी जब
बचेगी, बेटी तभी बचेगी जब उसकी मां को इस दुनिया में सही अधिकार मिलेगा, इज्जत
मिलेगी और बराबरी का हक मिलेगा। पिछले दिनों मैं दो औरतों से मिली दोनों एक ओर घर में
परिवार में चारदीवारी के अंदर अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं और वही बाहरी दुनिया
में इज्जत की लडाई। फोटो विथ डॉटर, बेटी पढाओ बेटी बढाओ लेकिन कितने प्रतिशत लोग
बेटी को पढा और बढा रहे हैं अगर पढा भी दे रहे हैं तो क्या उन्हें बढने दे रहे
हैं।
लाखों की संख्या में दसवीं बौर बारहवीं में अव्वल आनेवाली ये बालिकाएं आखिर
कहां चली जा रही हैं। कहां बलात्कार की, छेडछाड की, तेजाब से जलाए जाने की, घर से
निकाले जाने की और सड़क पर चलते हुए घूरे जाने की कितनी ही घटनाएं मुंह बाए उनका
पीछा कर रही हैं। इसकी ओर कौन से पुरुष ध्यान देंगे। मुझे हंसी तब आई जब समाज
सेविका और एक अदाकारा श्रुति सेठ ने चंद लाइने क्या लिख दीं बेटियों के साथ फोटो
चस्पा रहे लोगों को इतनी मिर्ची लगी कि उन्हेांने तरह तरह की उपमाएं दे डालीं।
गंदी भददी गालियों से उनका सोशल नेटवर्किंग साइट को ही भर दिया। फिर क्हां इज्जत
किसकी इज्जत और कौन करेगा इज्जत। कौन पढाएगा और कौन बढाएगा बेटियों को। जो चंद
लाइनें नहीं बर्दाश्त कर सका, वो यह नहीं समझ पाया कि वे भी किसी की बेटियां हैं।
चलिए ये बातें फिर कभी। अभी बात दो कुसुम की एक घर घर झाडू लगाती है, कूडा उठाती
है। पति सरकारी नौकर है, तीन बेटे हैं। बाप ने मरती हुई बेटी को घर में जगह नहीं
दी बेटों ने भी बाप का साथ दिया। उन्हें डर था कि कहीं हमारे घर के जो तीन हिस्से
होने हैं चार में न बंट जाएं। बाप बेटे एक हो गए और कैंसर पीडित बेटी को गरीब पति
के साथ मरने के लिए छोड दिया। मां पति और बेटे से अपनी मरती हुई बेटी के लिए घर में
जरा सी जगह मांगती रही। बोलती रही ये भी हमारी ही औलाद है, भाइयों से कहा इस बहन न
जाने कितनी बार तेरी कलाई पर राखी बांधी है तेरी लंबी उम्र की दुआएं की है क्या
तू उसे घर में जरा सी जगह नहीं दे सकता। बाप और बेटे ने मिल कर मां कुसुम से कहा
जा तू भी मर जा इसके साथ। नहीं है मेरे घर में इसके लिए जगह और नहीं है फूटी कौड़ी
इसके इलाज के लिए। मां ने भी आाव देखा न ताव बेटी का हाथ पकड़ा और कमरा किराये पर
लिया और रहने लगी। बेटी मर चुकी है। मां की आंखे आंसुओ से डबडबाइ्र रहती है। हर
महीने की 22 तारीख को मां अपनी बेटी को याद करती है। मुझसे कहा ठीक किया तूने, अच्छी
है तू किस की खातिर और क्यों। मैं समझ
चुकी थी। सलाम करती हूं मां तुझे। कितनी महिलाएं इतनी हिम्मत कर पाती हैं।
कुछ ऐसा ही हाल दिल्ली यूनिवर्सिटी में इको रिक्शा चलाने वाली कुसुम का भी
है। बडे मजे से कहती है बाप ने ऐसा नकारा ढूंढा जो मेरी कमाई खाता था और मारता भी
था। बाप को शिकायत की तो बोला अब जिंदगी इसी के साथ बितानी होगी। कुछ दिन सहती रही
लेकिन एक दिन जब लगा अब बहुत हुआ क्यों मार खा रही हूं। कमा के भी मैं ही ला रही
हूं, बच्चे भी मैं ही पाल रही हूं तो क्यों चाहिए ये मुझे। और मैं घर छोड कर
निकल गई। दो साल से विश्वविघालय मेटो स्टेशन पर ई रिक्शा चलाती है। परेशानियां
खत्म नहीं हुई थीं। इरिक्शाा चलाने वाले पुरुषों ने बहुत छींटा कशी की थी लेकिन
हार नहीं मानी, लड़ती रही। कुसुम का साथ विघार्थियों ने दिया।
तब मोदी जी अगलती मन की बात में तनी बेटियों को इज्जत बराबरी का हक और जायदाद में हिस्सा परिवार में बराबरी के हिस्से की भी बात 'मन की बात' में लगे हाथ कर दीजिएगा। कम से कम मजबूत न सही मजबूरी में फंसी बेटियों काे ही बाप बराबरी का हिस्सा तो दे, उसे भी उतना ही सम्मान दे जितना बेटों को दे रहा है। मुखग्नि बेटियां भी दे सकती हैं। सेल्यूट है उन अभिभावकों को जिन्हेांनें बेटियों को ही सबकुछ माना और एक या दो बेटियों के बाद बेटों के लिए बेटियों की लाइन नहीं लगाई। वो हैं असली हकदार इस संसार में सम्मान के।
कुसुम आपको आज दिल से सलाम करने का मन है। आपकी बातों से न केवल दिल भर गया बल्कि आज अपराध बोध से भी भर गया। क्या सचमुच अनाथ होती हैं बेटियां। क्या सचमुच बेटियों से प्यार दिखावा है। ठीक किया आपने जो बेटी के लिए अपने तीनों बेटों को छोड दिया, पति को कहा रखो अपना पैसा जब ये मेरी मरती बेटी के काम न आ सका तो इस पैसे पर मैं लानत भेजती हूं। मां तुझे सलाम, तुम्हारे ये आंसू जाया नहीं जाएंगे, एक एक आंसू का जवाब तुम्हारे बेटों और पति को देना होगा। मैं आपके साथ हूं।
तब मोदी जी अगलती मन की बात में तनी बेटियों को इज्जत बराबरी का हक और जायदाद में हिस्सा परिवार में बराबरी के हिस्से की भी बात 'मन की बात' में लगे हाथ कर दीजिएगा। कम से कम मजबूत न सही मजबूरी में फंसी बेटियों काे ही बाप बराबरी का हिस्सा तो दे, उसे भी उतना ही सम्मान दे जितना बेटों को दे रहा है। मुखग्नि बेटियां भी दे सकती हैं। सेल्यूट है उन अभिभावकों को जिन्हेांनें बेटियों को ही सबकुछ माना और एक या दो बेटियों के बाद बेटों के लिए बेटियों की लाइन नहीं लगाई। वो हैं असली हकदार इस संसार में सम्मान के।
कुसुम आपको आज दिल से सलाम करने का मन है। आपकी बातों से न केवल दिल भर गया बल्कि आज अपराध बोध से भी भर गया। क्या सचमुच अनाथ होती हैं बेटियां। क्या सचमुच बेटियों से प्यार दिखावा है। ठीक किया आपने जो बेटी के लिए अपने तीनों बेटों को छोड दिया, पति को कहा रखो अपना पैसा जब ये मेरी मरती बेटी के काम न आ सका तो इस पैसे पर मैं लानत भेजती हूं। मां तुझे सलाम, तुम्हारे ये आंसू जाया नहीं जाएंगे, एक एक आंसू का जवाब तुम्हारे बेटों और पति को देना होगा। मैं आपके साथ हूं।
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