देश की महिला खिलाड़ी भेदभाव की शिकार होती रही हैं। बात खेल के मैदान में सम्मान देने की हो या फिर सम्मानित किए जाने की। पुरुषों की तुलना में उन्हें हमेशा ही कमतर आंका जाता रहा है। और जब महिला खिलाडि़यों ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की तब उन्हें या तो प्रतिबंधित कर दिया गया या फिर ऐसे जलील किया गया कि उन्होंने घुटने ही टेक दिए। एक सवाल जो बार बार उठता है आखिर कब तक। महिला खिलाडि़यों के साथ ये भेदभाव कब तक। सायना नेहवाल ने पिछले दिनों पद्रमश्री सम्मान के लिए अर्जी लगाई थी, सम्मान से वंचित रह गईं। बॉक्सर सरिता याद है आपको, उसने खेल के मैदान में मैडल लेने से मना कर दिया पूरी दुनिया देख रही थी उसके साथ भेदभाव हो रहा है। बडे खिलाडी तक उसके साथ थे लेकिन क्या हुआ उसपर एक साथ का प्रतिबंध लगा दिया गया कि वह किसी भी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेगी। हार गई। माफी मांगनी पडी उसे। गलती विरोध की आवाज बुलंद की थी उसने। मैरी कॉम फिल्म सभी ने देखी होगी। आज जब वो देश के लिए मैडल ले आई तो सभी उसके साथ सेल्फी ले रहे हैं लेकिन जब वो अपना हक मांग रही थी तो उसे बार बार बेइज्जत किया जा रहा था। सम्मानित राशि की बात तो छोड़ ही दीजिए। बॉक्सर विजेन्द्र जितना कांस्य पदक लाकर सम्मानित कर दिए गए होंगे मैरी कॉम और महिला खिलाडी अगर गोल्ड मैडल भी ले आएं तो उन्हें उतना न तो मंत्रालय सम्मान देना है न देश। आज फिर एक महिला खिलाड़ी ने विरोध की आवाज बुलंद की है। अब देखना ये है कि मंत्रालय और देश उसके साथ क्या व्यवहार करता है। भारत की महिला स्क्वैश चैंपियन है दीपिका पल्लिकड़। विश्व में 18 वें रैंक की खिलाड़ी है। उन्हेांने प्राइज मनी में देश के मंत्रालय से बराबरी की मांग की है। उन्होंने कहा है कि पुरुष चैंपियन को सरकार 120,000 रुपए देती है उसी सम्मान के लिए उसी स्टेज पर महिला चैंपियन को महज 50,000 रुपए थमाए जाते हैं। ठीक है खिलाड़ी देश के लिए खेलता है पैसे के लिए नहीं। फिर यह सम्मान का ढोंग ही नहीं होना चाहिए। या अगर हो रहा है तो दोनों को एक तरह से सम्मानित किया जाना चाहिए।
महिला हॉकी टीम से लेकर महिला क्रिकेट टीम की खिलाडि़यों तक सममान और पुरस्कार के नाम पर यह भेद भाव किया जाता रहा है। टीवी प्रसारणों तक में महिला मैच को कभी नहंी दिखाया जाता। महिलाओं के साथ भेदभाव की यह न तो पहली घटना थी न आखिरी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर फिर आंदोलित कर रही है।
स्क्वैश खिलाडी दीपिका पल्िलकड ने विरोध की आवाज बुलंद की है। उन्होंने प्राइज मनी में बराबरी की मांग की है। उन्होंने कहा है कि जब पुरुष खिलाड़ी चैंपियन को 1लाख 20 हजार रुपए सम्मान के दिए जाते हैं तब उसी खेल में महिला विश्व विजेता को महज 50000 क्यों। पल्लिकल कहती हैं कि जब तक पुरूष और महिला खिलाड़ियों के लिये समान पुरस्कार राशि नहीं कर दी जाती है तब तक वह इस घरेलू टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लेंगी. केरल की रहने वाली पल्लिकल अपने राज्य में पहली बार हो रही राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेना चाहती थी लेकिन पुरूष खिलाड़ियों के लिये पुरस्कार राशि अधिक होने के कारण उन्होंने लगातार चौथे वर्ष इससे हटने का फैसला किया।
दीपिका का सवाल और विरोध वाजिब है। टाइम्स की इस खबर के बाद पता नहीं दीपिका के साथ खेल मंत्रालय और मंत्री कैसा व्यवहार करेंगे। फिर एक बार चमकते सितारे को अंधेरे के गर्त में ढकेल कर उसे हैसियत दिखाई जाएगी। उसके सम्मान छीने जाएंगे उसके विरोध पर विराम लगाने के लिए उसपर प्रतिबंध तक लगाया जाएगा। एक ओर जब देश बेटी बचाओ, बेटी पढाओ और सेल्फी खिचाओं पर जोर दे रहा है उस समय दीपिका और उस जैसी देश की हजारों खिलाडि़यों के साथ मैं सुर में सुर मिलाते हुए कहना चाहती हूं। बराबरी लाओ। मोदी जी जरा खिलाडि़यों और उनके अधिकारों की ओर भी ध्यान दीजिएगा। सेल्फी से बदलाव नहीं आएगा जानकारी और बराबरी से बदलाव के बारे में सोचा जा सकता है। http://timesofindia.indiatimes.com/sports/more-sports/others/Dipika-Pallikal-wants-equal-prize-money/articleshow/48013742.cms
महिला हॉकी टीम से लेकर महिला क्रिकेट टीम की खिलाडि़यों तक सममान और पुरस्कार के नाम पर यह भेद भाव किया जाता रहा है। टीवी प्रसारणों तक में महिला मैच को कभी नहंी दिखाया जाता। महिलाओं के साथ भेदभाव की यह न तो पहली घटना थी न आखिरी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर फिर आंदोलित कर रही है।
स्क्वैश खिलाडी दीपिका पल्िलकड ने विरोध की आवाज बुलंद की है। उन्होंने प्राइज मनी में बराबरी की मांग की है। उन्होंने कहा है कि जब पुरुष खिलाड़ी चैंपियन को 1लाख 20 हजार रुपए सम्मान के दिए जाते हैं तब उसी खेल में महिला विश्व विजेता को महज 50000 क्यों। पल्लिकल कहती हैं कि जब तक पुरूष और महिला खिलाड़ियों के लिये समान पुरस्कार राशि नहीं कर दी जाती है तब तक वह इस घरेलू टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लेंगी. केरल की रहने वाली पल्लिकल अपने राज्य में पहली बार हो रही राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेना चाहती थी लेकिन पुरूष खिलाड़ियों के लिये पुरस्कार राशि अधिक होने के कारण उन्होंने लगातार चौथे वर्ष इससे हटने का फैसला किया।
दीपिका का सवाल और विरोध वाजिब है। टाइम्स की इस खबर के बाद पता नहीं दीपिका के साथ खेल मंत्रालय और मंत्री कैसा व्यवहार करेंगे। फिर एक बार चमकते सितारे को अंधेरे के गर्त में ढकेल कर उसे हैसियत दिखाई जाएगी। उसके सम्मान छीने जाएंगे उसके विरोध पर विराम लगाने के लिए उसपर प्रतिबंध तक लगाया जाएगा। एक ओर जब देश बेटी बचाओ, बेटी पढाओ और सेल्फी खिचाओं पर जोर दे रहा है उस समय दीपिका और उस जैसी देश की हजारों खिलाडि़यों के साथ मैं सुर में सुर मिलाते हुए कहना चाहती हूं। बराबरी लाओ। मोदी जी जरा खिलाडि़यों और उनके अधिकारों की ओर भी ध्यान दीजिएगा। सेल्फी से बदलाव नहीं आएगा जानकारी और बराबरी से बदलाव के बारे में सोचा जा सकता है। http://timesofindia.indiatimes.com/sports/more-sports/others/Dipika-Pallikal-wants-equal-prize-money/articleshow/48013742.cms
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