मैं जब भी उनकी आंखों में देखती हूं मुझे अनगिनत सपने तैरते नजर आते हैं. उनके टैलेंट के आगे अंग्रेजी स्कूल और कॉन्वेंट स्कूलों से मिले बड़े बड़े सर्टीफिकेट बेमानी से नज़र आते हैं.ये वो बचपन है जो सपने तो अनगिनत देख रहा है लेकिन उसे पूरा कैसे करें उसका उसे कोई ठौर नहीं मिल रहा है...
एक की आंखें खुद को टीचर बनता देखना चाहती हैं और दूसरी की आंखे डॉक्टर..
कुछ कुछ आंखों में सपना डांसर बनने का भी है और कोई तो वो दीदी जैसा बनना चाहती है पत्रकार..
एक की आंखें खुद को टीचर बनता देखना चाहती हैं और दूसरी की आंखे डॉक्टर..
कुछ कुछ आंखों में सपना डांसर बनने का भी है और कोई तो वो दीदी जैसा बनना चाहती है पत्रकार..
उन सपनों को पूरा करने की पहल में मैंने अपने सपने को दरकिनार कर दिया है...इन बच्चों में इतना दम है कि एक बार बताई बात को हूबहू आपके सामने पेश करने के जुगत में जुट जाते हैं...
इन सपनों के बीच और भी सपने पल रहे हैं...अच्छे जीवन का सपना...साफ सड़क और सुरक्षित जीवन का सपना...जहां पीने का पानी साफ हो..जहां नालियां बजबजाती न हों..
जहां घर से बाहर पूरा कपड़ा पहन कर निकलने के बाद भी आंखें तन के अंदर तक घुस जाने को बेताब न दिखें...
कोमल मन ये सवाल न करे...दीदी हम जब भी निकलते हैं ये सारे अपना खास अंग क्यों पकड़ लेते हैं?
अंग अपना वो पकड़ते हैं और चरित्र हमारा क्यों खराब हो जाता है?
दीदी कल मुझे एक गंदे से लड़के ने कुछ गलत कहा ...आपने कहा था मां को बताना....दीदी मैंने मां को बताया था....मां ने मुझे स्कूल जाने को कुछ दिन के लिए मना कर दिया है...और डांटा भी कि मैंनें आंखों में काजल लगाया था ...इसलिए मुझे उसने ऐसा कहा...
इन बिखरते सपनों और सवालों के बीच झूलती मैं...लड़कियों को देख कर अपना अंग वो टटोले और खराब बदचलन लड़कियां क्यों ?
सपने जो जन्म लेते ही मरने के लिए हैं...झुग्गी झोपड़ी के सपने...जो छूना आसमान चाहते हैं लेकिन कई कुचल कर मार दिए जाते हैं...लेकिन इनमें से कुछ हिम्मत करते हैं...और आसमान में सुराख कर देते हैं....अनकही...क्या जवाब दूं?
इन सपनों के बीच और भी सपने पल रहे हैं...अच्छे जीवन का सपना...साफ सड़क और सुरक्षित जीवन का सपना...जहां पीने का पानी साफ हो..जहां नालियां बजबजाती न हों..
जहां घर से बाहर पूरा कपड़ा पहन कर निकलने के बाद भी आंखें तन के अंदर तक घुस जाने को बेताब न दिखें...
कोमल मन ये सवाल न करे...दीदी हम जब भी निकलते हैं ये सारे अपना खास अंग क्यों पकड़ लेते हैं?
अंग अपना वो पकड़ते हैं और चरित्र हमारा क्यों खराब हो जाता है?
दीदी कल मुझे एक गंदे से लड़के ने कुछ गलत कहा ...आपने कहा था मां को बताना....दीदी मैंने मां को बताया था....मां ने मुझे स्कूल जाने को कुछ दिन के लिए मना कर दिया है...और डांटा भी कि मैंनें आंखों में काजल लगाया था ...इसलिए मुझे उसने ऐसा कहा...
इन बिखरते सपनों और सवालों के बीच झूलती मैं...लड़कियों को देख कर अपना अंग वो टटोले और खराब बदचलन लड़कियां क्यों ?
सपने जो जन्म लेते ही मरने के लिए हैं...झुग्गी झोपड़ी के सपने...जो छूना आसमान चाहते हैं लेकिन कई कुचल कर मार दिए जाते हैं...लेकिन इनमें से कुछ हिम्मत करते हैं...और आसमान में सुराख कर देते हैं....अनकही...क्या जवाब दूं?
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