पूजा मेहरोत्रा
यमुना नदी देश की
सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है और दिल्ली में नाला बन कर बह रही है..मेट्रो से
गुजरते हुए जब माएं अपने बच्चों को बताती हैं देखो यमुना नदी... तो बच्चे मां की
ओर देखते हुए पूछते हैं..क्या ये नदी है?
ये तो कालिंदी के पास गुजरता हुआ नाला लग रही है...मां फिर कहती है वो कालिंदी के पास वाला जिसे आप गंदा नाला कह रहे हो वो भी यही यमुना है..
यमुना अपनी जिंदगी
की आखिरी सांस ले रही है। बरसात के दिनों को छोड़ दें तो दिल्ली में तो कम से कम इस
नदी में पानी नजर ही नहीं आता। हां, गंदा नाला जरूर कहा जा सकता है। वास्तव में दिल्ली
से गुजरते हुए इसमें केवल गंदगी ही बहती हुई मिलती है। इस गंदगी का परिणाम यह है
कि नदी में ऑक्सीजन नाम मात्र को भी नहीं रह गया है। जिसके कारण यमुना में रहने
वाले जीव जंतु समाप्त होते जा रहे हैं। इस नदी से उठने वाली सड़ाध से इसे पार कर
के आने जाने वाले तो फटाफट भागते हैं लेकिन मामला तो और भी गंभीर है। पर्यावरण से
जुड़ी एजेंसी का दावा है कि यमुना किनारे उगाई जा रही सब्जियां तक जहरीली हो चुकी
हैं और इसके किनारे पर रहने वालों में भी विभिन्न प्रकार की गंभीर बीमारियां घर
कर रही हैं।
यमुना की दिन ब दिन
बिगडती हालत पर पिछले 30 वर्षों से लगभग हर सरकार अपनी-अपनी राजनीति कर रही है। यमुना
की साफ सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए हैंA इसके बावजूद इस नदी में पानी की स्थिति में कोई
सुधार नहीं हुआ है बल्कि साल दर साल पानी और गंदा और यमुना की स्थिति और खराब हुई
है। यमुना की बेहतरी तो दूर की बात है इसके हालात
में जरा भी अच्छाई की ओर परिवर्तन होता नहीं दीख रहा है।
यमुना के उद्धार के
लिए दिल्ली सरकार ने यमुना एक्शन प्लान
वन, टू और थ्री जैसी कई योजनाएं लागू की गई हैं लेकिन इसके पानी के किस्म में कोई
सुधार नहीं हुआ हालत जस की तस बनी होती तो कोई बात होती यहां हालत बद से बदतर ही होती
जा रही है। ऐसा तब हो रहा है जब यह मामला दिल्ली देश की राजधानी का है और यहां
केंद्र और राज्य सरकार तथा संसद है और देश के सभी पैरोकार यहां बैठकर बडी बडी
योजनाएं बनाते हैं। यमुना का मामला आम जनता की अदालत से देश की सर्वोच्च अदालत
में वर्षों से विचाराधीन ही बना हुआ है।
ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने यमुना में गंदगी
फेंकने वालों पर पांच हजार तक जुर्माने का ऐलान तक कर दिया लेकिन क्या सचमुच जुर्माना
लगाया जा रहा है? याफिर एनजीटी का यह
फैसला भी अन्य फैसलों की तरह बस अखबारों और खबरिया चैनलों की सुर्खियां बटोर कर
रह गईं. हमने कई-कई बार यमुना किनारे की यात्रा भी की। हमने जो देखा वो रुला देने
वाला था। कोई यमुना में फूल डाल रहा था तो कोई मीठा चढा रहा था और कोई आरती कर रहा
था, कुछ लोग तो अपने घर की पूजन सामग्री लाकर यमुना में विसर्जित कर रहे थे। जबकि
यमुना के किनारे जगह-जगह मां दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी सहित कई देवी देवताओं की
मूर्तियां बिखरी पड़ी मिलीं. जगह जगह पूजन सामग्री, घड़े, कपड़े तक दिखे.
जबकि वजीराबाद बैराज से महज १०० मीटर की दूरी पर
यमुना नजफगढ़ नाला यमुना में गिर रहा है। लगभग आधी दिल्ली की गंदगी लिए ये नाला
साफ सुथरी यमुना के पानी को विशैला और खुद की तरह बदबूदार बना रहा है. एनजीटी के
आदेश का पालन होता कहीं नहीं दिखाई देता है। यमुना की सफाई की जिम्मेदारी केद्र से लेकर राज्य
सरकार पर तो है ही देश के नागरिक भी उतने ही जिम्मेदार हैं
क्या ऐसे साफ हो पाएगी यमुना ? ऐसे कई सवाल मेरे अंदर उमड़
घुमड़ रहे हैं। मुझे पानी से जितना डर लगता है उतना ही नदियों से प्यार है।
यमुना वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज तक यमुना 22 किलोमीटर तक फैली है और शहर के बीचों-बीच बहती है। यह 22 किलोमीटर पूरी यमुना की 1376 किलोमाटर का महज 2 फीसदी ही है। वैज्ञानिकों और
जानकारों का कहना है कि यमुना जितनी बदहाल दिल्ली में होती है उतनी अपने 14 सौ
किलोमीटर के सफर में कहीं नहीं होती है। यहां प्रतिदिन औसतन 3800 मिलियन लीटर सीवेज निकलता है।
दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट करने वाले संयत्रों की क्षमता 2460 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। जिसमें से महज 1558 एमएलडी ही साफ हो पाता है। इस
प्रकार औसतन करीब 2242 मिलियन लीटर सीवेज की गंदगी को
बिना साफ किए हुए यमुना मे बहा दिया जाता है।
मानसून के महीनो अलावा वजीराबाद बैराज से पानी
कभी भी यमुना में नहीं डाला जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि दिल्ली में
पहले ही पानी की बहुत कमी होती है और यमुना ही पीने का पानी का सहारा है। इसका
परिणाम यह होता है कि वजीराबाद के बाद यमुना में जो भी नाले गिर रहे है वह केवल शहर
की गंदगी ही होती है। यदि यमुना में साफ पानी छोडा जाता तो शायद वह गंदे नाले के
पानी को वह बहा ले जाता चूकि पानी वहां रोककर पीने योग्य बनाया जाता है इसलिए
यमुना वहीं शांत हो जाती है।
योजनाएं बनती रहीं यमुना मैली होती रही
पिछले 30 सालों में
यमुना की सफाई के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई है। जल बोर्ड द्वारा वर्ष 1998-99
में 285 करोड रूपए खर्च किए जबकि 1999 से 2004 के बीच जल बोर्ड ने 439 करोड रूपए
खर्च किए गए है। यमुना की सफाई के नाम पर डीएसआईडीसी ने लगभग147 करोड रूपए खर्च
किए है। यमुना सफाई अभियान के नाम पर दिल्ली में पब्लिक टॉयलेट और दूसरे मदों में
171 करोड रूपए खर्च किए गए। इस लागत में पूरी दिल्ली में लगभग 558 कम कीमत के
पब्लिक टॉयलेट बनाया। आज इनमें से कई टॉयलेट प्रयोग में नहीं है, कई का कहीं
अस्तित्व ही नजर नहीं आता है। कुछ ऐसी जगह बनाए गए हैं जहां कोई जाएगा भी नहीं।
बस्तियों को ध्यान में रखकर बनाए गए होते तो महिलाओं को खुले में शौच जाने की
जरूरत नहीं होती। दिल्ली की सरकारी कॉलोनियों के इर्द गिर्द बसी बस्तियों के आस
पास यदि आप गुजर जाएं तो आपको रास्तों पर ही बच्चे गंदगी करते मिल जाएंगे। गरीब
बस्ती वालों को टॉयलेट के प्रति सरकार और एजेंसियों ने सजग नहीं किया। स्वास्थ्य
की जानकारी भी नहीं दी। कही पानी की व्यवस्था नहीं है तो कहीं सफाई की व्यवस्था
नहीं है।
कितनी पवित्र
है यमुना
सेंट्रल पॉलुशन कंट्रोल बोर्ड ने 1,376 किलोमीटर लंबे यमुना
के स्ट्रेच को जिओग्राफिकल और इकोलोजिकल सेगमेंट के हिसाब से पांच भागों में बांटा
है। हिमालयन सेगमेंट यानि यमनोत्री से ताजेवाला तक 172 किलोमीटर स्ट्रेच को क्लीन
फेज की श्रेणी में रखा है। जबकि अपर स्ट्रेच यानि ताजेवाला से वजीराबाद तक फैले
224 किलोमीटर के स्ट्रेच को थोडा साफ स्ट्रेच की श्रेणी में रखा गया है। दिल्ली का
22 किलोमीटर का वजीराबाद से ओखला बेराज तक के स्टेज को सबसे ज्यादा प्रदूषित
श्रेणी में रखा है। यूट्रोफिकेटेड स्टे्रच 490 किलोमीटर यानि ओखला से चंबल तक की
दूरी को कहा है। इस स्ट्रेच में यमुना दिल्ली, मथुरा और आगरा
से होकर गुजरती है। यमुना पश्चिमी किनारे पर बसा दिल्ली सबसे अधिक जनसंख्या वाला
और महत्वपूर्ण शहर है। दिल्ली में यमुना के दोनों किनारों पर बस चुकी है। यमुना यमुनोत्री
से 425 किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली के उत्तर में गांव पल्ला से प्रवेश करती है।
ओखला के निकट जैतपुर में उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करती है। दिल्ली में इसकी
चैड़ाई एक किलोमीटर से लेकर 4.5 किलोमीटर तक फैली है।
यमुना गंदे होने के सफर में सात राज्यों से होकर
गुजरती है। यमुना अपना सबसे लंबा सफर मध्य प्रदेश में 40.6 फीसदी तय करती है, फिर राजस्थान में 29.8 फीसदी, उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश में अपने सफर का 21 फीसदी
सफर पूरा करते हुए हरियाणा में 6.1 और हिमाचल प्रदेश में 1.6 और सबसे कम सफर 0.4 फीसदी
सफर दिल्ली में तय करती है। यमुना की
ऊंचाई समुद्रतल से ग्लेशियर से 3320 मीटर है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में सोनीपत, रोहतक और गुडगांव से घिरा है। पूर्व की ओर से उत्तर
प्रदेश के गाजियाबाद से घिरी है। यमुना दिल्ली की पूर्वी सीमा से होती हुई उत्तर
दक्षिण की दिशा में बहती है। दिल्ली में यमुना
की लंबाई लगभग 50 किलोमीटर है। नदी की चैडाई जगह के हिसाब से घटती बढती रहती है।
यमनोत्री से इलाहाबाद तक अगर इसकी लंबाई पर नजर डालें तो यह लगभग 1400 किलोमीटर
है। यमुना में चंबल,
हिंडन, केन और साहिबी नदी मिलती है। कहने को तो यमुना देश की
सबसे पवित्र माने जाने वाली नदियों में से एक है। यमुना गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी
है। यमुना किनारे आने वाले दिल्ली के अलावा प्रमुख राज्य हैं उत्तरांचल, हिमांचल, उत्तर प्रदेश और हरियाणा।
यमुना में प्रदूषण हरियाणा के ताजेवाला से शुरू होता
है। ताजेवाला से हीं यमुना नदी से दो नहरें निकाली जाती है। एक नहर पश्चिमी यमुना
केनाल और दूसरी पूर्वी यमुना केनाल कही जाती है। ताजेवाला के पास ही अब यमुना पर
एक नया अधिक क्षमता का बांध बना कर बचे खुचे पानी को और भी अधिक व्यवस्थित तरीके
से रोकने की व्यवस्था की गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि मानसून के तीन महीनों को
छोड कर यमुना नदी का अधिकतर पानी इन्हीं दोनों नहरों के मार्फत हरियाणा और उत्तर
प्रदेश में सिचाई और पीने के पानी के लिए उपयोग किया जाता है। पूर्वी यमुना केनाल
का पानी उत्तर प्रदेश के काम आता है जबकि पश्चिमी केनाल का पानी हरियाणा होते हुए
दिल्ली आता है। दिल्ली के हैदरपुर जल संयत्र तक पहुचने के पहले पश्चिमी यमुना
केनाल यमुना नगर,
करनाल से गुजरता हुआ आता है।
पश्चिमी यमुना केनाल से निकलने वाले नाला नंबर 2 और 8 से मिलने वाला पानी यमुना
में जाकर मिलता है। इससे यमुना नदी में पानी की बढोतरी होती है। पश्चिमी यमुना
केनाल से एक और नहर निकलती है जो करनाल से करीब 80 किलोमीटर दूर वापस आकर इसी
केनाल में मिल जाती है। इस केनाल से मिलने वाले पानी का इस्तेमाल हरियाणा के खेती
किसानी के लिए किया जाता है। यमुना नगर से निकलने वाली सारी गंदगी बिना किसी तरह
से साफ किए इसी केनाल में बहा दी जाती है। यह सारी गंदगी पश्चिमी यमुना केनाल में
मिल जाती है। इसी कारण कई बार हैदरपुल जल संयत्र उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली के बहुत
बडे भाग को पीने का पानी सप्लाई करता है। इस नहर में पानी का स्तर गिरने या उसमें
अधिक प्रदूषण होने के कारण कई बार पानी को साफ करना संभव नहीं हो पाता उससे दिल्ली
को पानी की आपूर्ति में भी बाधा पहुंचती है।
इसके अलावा पानीपत शुगर मिल और शराब बनाने वाले
कारखाने से निकलने वाली गंदगी पास में इस्तेमाल नहीं की जा रही पुरानी कच्ची नहर
मे बहा दी जाती है। इस नहर के किनारे कच्चे हैं इसलिए यह गंदगी बहकर पश्चिमी यमुना
केनाल में मिल जाती है और जब ऐसा होता है तो पश्चिमी यमुना नहर के पानी में
बायोलोजीकल ऑक्सीजन डीमांड में भारी बढोतरी हो जाती है। फिर यह पानी हैदरपुर जल
संयत्र में पहुंचता है तो कई बार इस पानी को पूरी तरह साफ कर पाना असंभव हो जाता
है। हरियाणा में होने वाली खेती में बडे पैमाने पर रसायनिक खादो और दवाओं का
इस्तेमाल किया जाता है। इनके प्रभाव से भी यमुना में प्रदूषण बढ रहा है। हरियाणा
में खेती किसानी प्रगति के साथ साथ इन रसायनिक खादो और दवाओं मे भी सार दर साल
बढोतरी हो रही है और इसका प्रभाव भी यमुना में बढते प्रदूषण में देखा जा सकता है।
यमुना के पानी पर देश के लगभग ६ करोड लोग निर्भर करते
हैं। यमुना में हर साल औसतन 10,000 क्यूबिक मीटर पानी बहता है। जिसमें से 4400
क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल हो पाता है बाकी बर्बाद हो जाता है। इस 4400
क्यूबिक मीटर पानी का लगभग 96 फीसदी पानी खेती के काम आता है। दिल्ली के 70 फीसदी
आबादी को पानी यमुना से मिलता है। दिल्ली में लगभग पीने के पानी समेत आम जीवन के
उपयोग के लिए लगभग 70 फीसदी लोग यमुना के पानी पर निर्भर करते हैं। दिल्ली में
पानी की सफाई के लिए लगाए गए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट पानी में से पेस्टीसाइट नहीं
निकाल पाते हैं। दिल्ली के बनाए गए जल संयत्रों में इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल
नहीं किया जा रहा है कि वह पानी में मिले हुए रसायनिक दवाओं के प्रभाव को हटा
सकें। पीने के लिए उपयोग किए जा रहे वाटरवक्र्स पानी में मिले पेस्टीसाइट को पहचान
भी नहीं पाता है।
हर साल इन शहरों में लाखों की संख्या में लोग हैजा
पीलिया जैसी बीमारियों से पीडित होते हैं। यह ऐसी बीमारियां है जो साफ पानी की
आपूर्ति कर आसानी से रोकी जा सकती हैं। इस खराब पानी के इस्तेमाल करने का असर
बच्चो और गरीबों पर पडता है क्योंकि वह इन नदियों के तलहटियों में डेरा डाले हुए
हैं। केद्रीय प्रदूषण जांच बोर्ड ने यमुना के पानी की जांच के दौरान इसमें
इंडोसल्फेन के प्रमाण पाए थे। इसके पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एच सी
अग्रवाल द्वारा किए गए एक अध्ययन के दौरान यमुना के पानी में डीडीटी पाए जाने के
भी प्रमाण मिले थे। यमुना नदी के पानी में पाए गए रसायनिक तत्वों के बाद इस बात की
आवश्यकता है कि ताजेवाला से इलाहाबाद तक के पूरे रास्ते में इन रसायनिक तत्वों के
बारे में जांच की जाए।
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