कुछ बातें आपके अंदर गहरी
बैठ जाती हैं..जिससे आप लाख पीछा छुड़ाना चाहें लेकिन छुड़ा नहीं पाते..मुझे दिल्ली में २०वां साल
है..लेकिन एख चीज़ जो नहीं बदली है वो है नार्थईस्ट के लोगों के प्रति हमारा व्यवहार...
चार दिन से ज्यादा हो चुका
है लेकिन मेरे कान में आज भी आवाज गूंज रही है...आई एम इंडियन..डोंट कॉल मी
नेपाली...
नॉर्थ ईस्ट से आए हमारे देशवासियों
के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं है..चूंकि उनमे मंगोलियन जीन डोमिनेटिंग है इसलिए
वो गोरे-गोरे चिकने चुपड़े से होते है उनकी नाक चपटी और आंख छोटी होती है..इसलिए
वो थोड़े से अलग दिखते हैं...लेकिन उन पर और उनके भारतीय होने पर सवाल नहीं उठना
चाहिए..लेकिन क्या करें..एक खास वर्ग है हमारे देश में जो कुएं का मेढ़क है..जो
दरबे से बाहर निकला ही नहीं..पढ़ा लिखा तो है लेकिन वही मानसिकता है हमसे बेहतर
कौन...हम सब जानते हैं...हमे देश क्या दुनिया भर की जानकारी है...ऐसे एक दो नहीं
ढ़ढ़ने निकलिए एक दो नहीं लाखों मिलेंगे ज्ञानी..ठाकरे जैसे ज्ञानी..जिसका किसी पर
बस नहीं चलता तो गरीब लाचार गरीब मजदूर बिहारी पर अत्याचार करता है...
सोमवार मेरे लिए कुछ ऐसा ही
था...एकबार फिर मैं इस खासवर्ग के ज्ञानी को यह समझाने की कोशिश कर रही थी....बता
दूं कि मैं बस में थी...दक्षिणी दिल्ली में...जहां एक नार्थ ईस्ट के दो युवाओं को
बस के कंडक्टर ने नेपाली बुलाया था...और उसमें से एक ने उतनी ही तेज आवाज़ में
जवाब दिया था ...आई एम नॉट नेपाली...आईएम इंडियन...। छोटी आंखें बड़ी करने की
नाकामयाब कोशिश..बुदबुदाता रहा बहुत देर तक...तब तक मैं पीछे पलट चुकी थी और उस
नॉर्थ ईस्ट के हैंडसम भारतीय का गुस्सा साफ साफ नजर आ रहा था...
मैं बस कंडक्टर के पास
पहुंची..कंडक्टर ने बड़े प्यार से पूछा क्या हुआ..टिकट मिली नहीं क्या?
मैंने कहा मिल गई...दरवाजा
खुलवाना है मैंने कहा नहीं...कुछ पूछना है. बोला पूछो..
मैंने कहा आपने चाय पी है
कभी...जी रोज पीता हूं..खूब पीता हूं...मैंने पूछा कहां होती है चाय की
खेती...बोला असम सहित नॉर्थ ईस्ट के कई ईलाकों में...मैंने कहा आप तो पढे लिखे
मालूम होते हो...बोला जी मैडम..ग्रेजुएट हूं...मैंने पूछा फिर उसे नेपाली क्यों
बुलाया?
मैंने दूसरे इंसान की तरफ
ईशारा कर पूछा.. भाई अगर उस आदमी को बुलाना होता तो कैसे बुलाते...बोला जी हरी
शर्ट वाला भाई ओए..ऐसे बुलाता...
फिर मैंने कहा ---फिर ये
नेपाली क्यों..
वो समझ चुका था..मेरी बात
कंडक्टर के समझ आ गई थी..लेकिन नॉर्थईस्ट वाला गर्म खून बुदबुदा रहा था...
आए दिन खबरें सुनने को
पढ़ने को मिल जाती है कि नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों को छेड़ा गया..लड़कों के साथ
मारपीट की गई..
कुछ ऐसा ही वाक्या मेट्रो
में हुआ था..खासवर्ग की महिलाएं अपनी पढ़ी लिखी बेटियों के साथ कश्मीरी गेट की
मेट्रो में चढ़ रही थीं..नॉर्थ ईस्ट की बच्चियों का ग्रुप गलती से गलत रूट की
मेट्रो में चढ़ गया था..दोनों ही झगड़ते हुए मेट्रो में घुसी...खासवर्ग वाली उन्हें
गंदी गंदी उपमाएं दिए जा रही थी..जिसे वो लड़कियां समझ नहीं पा रहीं थी क्योंकि वो हिंदी तो बोल रहीं थी लेकिन
अंदाज..थोड़ा हटके वाला था... वो महिलाएं उन स्मार्ट खूबसूरत लड़कियों की शान में
हर वो अच्छी बातें बोल चुकीं थी जो किसी पढी लिखे से उम्मीद नहीं की जा सकती...वो
महिलाएं उन बच्चियों को बाहर से आई धंधे करने वाली तक कह चुकी थीं...वो बच्चियां
सिर्फ एक ही बात कह रहीं थी...वी आर प्राउड इंडियंस...
उस खास वर्ग महिला को कई
लोग तबतक समझा चुके थे..चुप हो जाइए..आपके साथ भी बेटियां हैं..ये बी किसी की
बेटियां है..कोई छोटे कपड़े पहने है तो विदेशी नहीं है..उसका चाल चलन खराब नहीं हो
जाता है...लेकिन वो नॉन स्टॉप बोल रही थी..मेरी सब्र की सीमा जवाब दे रही
थी...
मैंने पूछा..क्या कहा इन्होंने..एक बच्ची बोली दीदी...ये हमलोगों के कपड़े से
लेकर हमसभी को विदेशी और गंदी लड़कियां कह रही हैं..बच्ची ने सारी बात अंग्रेजी
में बोली...सामने की कुस्री पर बैठी उस महिला को लगा कि वो लड़कियां शिकायत कर
रहीं है...वो फिर चिल्लाने लगी...उस महिला के साथ तीन कॉलेज जाने वाली लड़कियां
थीं...मैंने सब्र का बांध टूटने के बाद पूछ ही लिया...आपलोग पढ़ती हैं..बोलीं
हा...सभी ने कॉलेज के नाम तक बता दिए..मैंने पूछा ये आपकी कौन हैं..बोली ...मां...
मैंने कहा आप इन्हें समझाइए कि वो गलत बोल रही हैं...उसके कपड़े छोटे हैं..वो हम
जैसी नहीं दिख रहीं हैं तो वो बाहर से आई धंधा करने वाली नहीं है...जो वो लगातार
बोल रहीं है...आपलोगों को तो समझ होनी चाहिए कि आप बताएं उन्हें...उस औरत को एहसास
हो चुका था लेकिन हार कैसे मानती..क्योंकि वो भी एक ज्ञानी बिरादरी से ही
थी...मैंने कहा आप इतनी देर उन्हें गलत बोल रहीं हैं...लेकिन उन्होंने आपकी एक बात
नहीं बोली..उनलोगों ने बस इतना कहा...वी आj प्राउड इडियंस....
अब समय आ चुका है कि कोई
नॉर्थ ईस्ट के लोगों के खिलाफ कुछ बोले तो हमें आगे आना चाहिए..पिछले २० सालों में
दिल्ली में भले ही बहुत बदलाव होते मैंने देखे लेकिन एक चीज जो नहीं बदली है वो है
नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति हम लोगों की नासमझी...जब मैं दिल्ली आई थी तो लोग
अक्सर एक दूसरे को बिहारी है क्या? कह कर बुलाते थे..अब वो थोड़ा कम हुआ
है...लेकिन नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति दुर्व्यवहार आज भी जस का तस बना हुआ
है...